Tuesday 21 June 2016

Somatoform Disorder in Hindi


Somatoform शब्द ग्रीक शब्द ‘soma’ से लिया गया है जिसका अर्थ होता है शरीर और मनोरोग में Somatoform Disorder का वर्गीकरण उन रोगों का होता है जिसमें शारीरिक लक्षण मुख्यतः होते हैं। इस प्रकार के रोगों में बाहरी कारकों के न होने के बावज़ूद शारीरिक लक्षण महसूस होते हैं और वह इन्हें गंभीर रोग मान बैठता है। इस रोग में मन और शरीर आपस में सामंजस्य ठीक से नहीं बैठा पाते हैं। शारीरिक लक्षण होने बावज़ूद भी लैब जांचे लगातार सामान्य पाई जाती है और बाहरी कारक नज़र नहीं आता।
      Somatoform Disorder के वर्गीकरण में मुख्यतः पांच प्रकार के रोग आते हैं क्रमशः
1.       Somatization Disorder
2.       Conversion Disorder
3.       Hypochondriasis
4.       Body Dysmorphic Disorder
5.       Pain Disorder

Somatization Disorder
Somatization Disorder में कई शारीरिक लक्षण एक साथ होते हैं जिन्हें शारीरिक जांच और लैब जांच में प्रमाणित नहीं किया जा सकता है अर्थात जांचे समान्य/नॉर्मल आती हैं। सामान्यतः यह रोग 30 वर्ष की आयु में प्रारंभ हो जाता है और अन्य somatoform disorder से यह लक्षणों की विविधता (multiple) की वजह से भिन्न होता है। यह लम्बे समय तक चलने वाला रोग होता है और इससे मानसिक तनाव उत्पन्न होता है, सामाजिक व व्यावसायिक कार्यक्षमता पर असर पड़ता है और रोगी अनावश्यक/अत्यधिक चिकित्सीय सलाह/जांच से गुज़रता है या इसकी मांग करता है।
   पुरुषों की तुलना में यह रोग स्त्रियों में 5-20 गुना तक ज्यादा पाया जाता है। ज्यादातर यह रोग कम शिक्षित और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में देखा गया है और यह रोग 30 वर्ष की आयु से पहले प्रारंभ हो जाता है।
   इस रोग के मूल कारणों का पता सही सही नहीं लगाया जा सका है। मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार यह लक्षण तनावभरी भावनाओं को व्यक्त करने का अचेतनमन प्रयास होता है या अपनी भावना का प्रतीकात्मक रूप से प्रस्तुत करने का तरीका है, जिसमे व्यक्ति का चेतनमन अनभिज्ञ रहता है। यह उन लोगों में भी देखा गया है जिनके परिवार में अस्थिरता की स्तिथि होती है या जिन्हें शारीरिक प्रताड़ना से गुज़ारना पड़ता है। जैविक कारणों में यह माना गया है कि कोशिकाओं को मिलने वाली नरंतर विद्युत तरंगों से रोगी अभ्यस्त (habituate) नहीं हो पाता है। अनुवांशिक शोधों में, परिवार में प्रथम रक्त्सम्बंधियों में यह रोग 10-20 प्रतिशत तक पाया जाता है
निदान (Diagnosis)
   Somatization Disorder के निदान के लिए चार तरह के विभिन्न अंगों में दर्द, दो तरह के उदर सम्बन्धी विकार, एक सेक्स सम्बन्धी विकार और एक तंत्रिका (neuro) सम्बंधी लक्षण का होना निर्धारित है; और इनमे से किसी भी लक्षण की शारीरिक जांच या लैब जांच में पुष्टि न होती हो।
      Somatization Disorder के प्रस्तुतीकरण में लम्बे समय से चलने वाली शारीरिक शिकायतों का जटिल व पेचीदा मेडिकल इतिहास होता है। इसके लक्षण कुछ इस तरह से हो सकते हैं: जैसे उलटी-उबकाई आना (गर्भावस्था के दौरान होना वाली से अलग), निगलने में परेशानी, हाथ-पैरों में दर्द, सांस चढ़ना (शारीरिक कसरत से अलग या प्रमाणित रोगों द्वारा निर्धारित रोगों से अलग), याददाश्त में फर्क, अधिकतर समय बीमार बने रहना की सोच।
   मस्तिष्क तंत्र के विकार जैसे दिखने वाले लक्षण हो सकते हैं जैसे शरीर पर अनियंत्रण, फलिज़, शरीर के भाग में कमजोरी, निगलने में परेशानी, गले में गोला जैसा अहसास, आवाज़ न निकलना, पेशाब बंद होना, दो वस्तुएं दिखना, अंधापन, बहरापन, मिर्गी जैसी गतिविधि।
   ऐसे रोगियों में अंतर-व्यक्ति (inter-personal) सामंजस्य खराब होता है और वे तनावरहित नहीं रह पाते हैं। इस तरह से वे अवसाद और घबराहट के लक्षणों से भी घिर जाते हैं। वैसे तो उद्देश्यपूर्ण आत्महत्या के विचार कम देखे गए हैं अपितु खुद को नुक्सान पहुंचाने की धमकी देखने को मिल सकती है। यदि रोगी साथ में व्यसन का भी शिकार है तो उद्देश्यपूर्ण आत्महत्या के विचार देखने को मिल सकते हैं।
   सम्पूर्ण रूप से देखा जाये तो ऐसे रोगियों का मेडिकल इतिहास अनावश्यक विस्तृतता से भरी हुई, असंक्षिप्त, अस्थिर, असंगत और अव्यवस्तिथ मिलती है। रोगी अपनी सम्पूर्ण परेशानियों को नाटकीय रूप से, भावुकता से और अतिशयोक्तिपूर्ण ढंग से पेश करता है। वे लक्षणों के कालिक अनुक्रम में संभ्रम (confusion) पैदा करते हैं और वर्तमान व भूतकाल के लक्षणों में अंतर नहीं कर पाते हैं।
रोग का व्यवहार
   यह रोग लम्बे समय तक चलने वाला रोग होता है और दुखदायी होता है। सामान्यतः यह 30 वर्ष की आयु के पहले प्रारंभ हो जाता है। लक्षणों की तीव्रता और नए लक्षणों की उत्पत्ति लगभग 6-9 महीनों तक चलती है। कम तीव्र लक्षणों वाली स्तिथि लगभग 9-12 महीनों तक रह सकती है कभी कभार ही ऐसा होता है कि रोगी एक साल तक चिकित्सक से परामर्श न ले।
इलाज
   इस रोग के बेहतर इलाज की संभावना तब होती है जब रोगी एक मनोचिकित्सक के संपर्क में रहे और उसके मार्गदर्शन पर अमल करे। परामर्श की अवधी सीमित रहे और गैर ज़रूरी जांचों से बचना चाहिए। अन्य प्रमाणित शारीरिक रोग के साथ में होने पर अवश्य उस पर ध्यान देना चाहिए और जांच व इलाज चलना चाहिए।
Psychotherapy/Counselling इस रोग का आधारभूत इलाज होता है जो लम्बे समय तक चलने वाली प्रक्रिया होती है।
CONVERSION DISORDER
   तीव्र मानसिक तनाव की स्तिथि में शरीर के क्रियाकलाप में आये नकारात्मक बदलाव जिसे शारीरिक संरचना के आधार पर प्रमाणित न किया जा सके उसे Conversion Disorder कहते हैं। इस रोग में न्यूरोलॉजी से सम्बंधित रोग जैसे दिखने वाले लक्षण होते हैं लेकिन विस्तार से जांच करने पर ये लक्षण न्यूरोलॉजी या मेडिसिन के विकार नहीं पाए जाते हैं। ये लक्षण हो सकते हैं जैसे फलिज़, अंधापन, सुन्नपन, गर्दन टेढ़ा होना, मिर्गी जैसा, बोल बंद होना, गिरना, चाल बदलना, बहरापन, उलटी, गले में गोला महसूस होना, दस्त, पेशाब रुकना, इत्यादि।
व्यापकता
इस रोग के कुछ लक्षण बहुत तीव्र न होकर हलके रूप में पाए जाते है जो एक तिहाई लोगों में मिल सकते है, कम तीव्र होने की वजह से चिकित्सीय सेवाओं तक उन्हें नहीं लाया जाता है। अलग-अलग शोधों में इसकी व्यापकता 5-15 प्रतिशत तक पाई गयी है, पुरुषों के मुकाबले यह रोग महिलाओं में 2-10 गुना तक ज्यादा पाया जाता है। बाल-अवस्था और युवाओं में यह रोग ज्यादा पाया जाता है। शोधों के अनुसार यह ग्रामीण जनता, कम पढ़े लिखे, कम बुद्धि वाले और कमजोर आर्थिक स्तिथि वाले लोगों में देखा गया है।
कारक
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इसके कई सिद्धांत हैं जैसे अंतर्मन के संघर्ष का दमन (repression of interpsychic conflict), प्राकृतिक/स्वाभाविक आवेग में विरोधाभास और इसकी अभिव्यक्ति पर रोक या यह अन्य को आकर्षित करने/रखने भावाभियक्ति भी हो सकती है। यह अवाचनीय तरीका हो सकता है दूसरों के व्यवहार को बदलने का या नियंत्रित करने का।
जैविक कारणों की अभी तक सही सही स्थापना नहीं हो पाई है, परन्तु दिमाग के प्रभावी गोलार्ध में रासायनिक क्रिया/प्रतिक्रिया की कमी देखी गयी है।
लक्षणों का प्रस्तुतीकरण
फालिज़, अंधापन, और बोल बंद होने वाले लक्षण सबसे अधिक प्रस्तुत होते हैं। सामान्यतः यह क्रोधित, आश्रित, असामाजिक, और नाटकीय प्रवृत्ति वाले चरित्र के साथ देखने को मिलता है। इसमें अवसाद और घबराहट सम्बन्धी रोग भी साथ-साथ हो सकते हैं। Conversion Disorder के लक्षणों के प्रस्तुतीकरण में और असल में हुए न्यूरोलोजिक विकार के शारीरिक जांच में असमानता का होना जैसे सुन्नपन का प्रारूप (pattern) अलग होना, सुन्नपन का बेहतरीन सीमांकन (perfect demarcation) का मिलना; अन्धपन, बहरापन, और अन्य दृष्टिविकारों की जांचों में दिमागी संरचना का सही पाया जाना जैसे CT Scan और MRI-Brain। विकार की तीव्रता का बढ़ जान जब उस पर ध्यान दिया जा रहा हो। चाल के विकार में रोगी का न गिरना और गिरने की स्तिथि में चोट का न लगना और EMG (Electromayogram) का समान्य आना।
रोग का व्यवहार
   25% रोगी तनाव की स्तिथि में दोबारा इस रोग से ग्रसित होते हैं। अचानक लक्षणों का उभारना, तनाव के कारन का पाता चलने, रोग से पहले अच्छी व्यवस्थित ज़िन्दगी, किसी अन्य रोग का न होना रोग से उबरने के अच्छे संकेतों में माना गया है।
इलाज
Insight Oriented Supportive या Behavior Therapy, Relaxation Therapy के साथ-साथ दवाइयों का काफ़ी अच्छा असर देखा गया है।

HYPOCHONDRIASIS  
                इस रोग में रोगी का मन किसी घातक रोग के हो जाने के या उसके होने के डर से घिरा रहता है। ये विचार शरीर में हुई हलचल या अहानिकारक लक्षणों के महसूस करने से उत्पन्न होता है जिसका कोई चिकित्सीय आधार नहीं होता है। Hypochondriasis शब्द प्राचीन मेडिकल शब्द hypochondrium से से लिया गया है जिसका अर्थ होता है ‘below the ribs’ या ‘पसलियों के नीचे’ क्योंकि इस रोग के ज्यादातर रोगी उदर सम्बन्धी लक्षणों के साथ प्रस्तुत होते हैं। रोगी के मन के इस अन्यथा सोच से घिरे रहने की वजह से उसके जीवन के व्यक्तिगत, व्यवसायिक और सामाजिक कार्यक्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है और वह अन्य ज़रूरी कार्यों को दरकिनार कर देता है।
व्यापकता
      एक शोध के अनुसार एक फ़िजीशियन की क्लिनिक में ऐसे रोगी 4-6 प्रतिशत तक हो सकते हैं और अधिकतम 15 प्रतिशत तक हो सकते हैं। सामान्यतः यह रोग 20-30 वर्ष की आयु में प्रारंभ हो जाता है।
कारक
      इस रोग में रोगी का दिमाग सामान्य सी होने वाली शारीरिक प्रतिक्रिया को बढ़ा-चढ़ाकर पढ़ता/महसूस करता है। व्यक्ति के पेट में वायु का दवाब, जो की नॉर्मल होता है, दर्द के रूप में महसूस होता है। रोगी की तंत्रिकाएं शरीर की समान्य प्रतिक्रिया पर भी विध्युत तरंगे दिमाग को अधिक मात्रा में सन्देश पहुँचाने लगती हैं जिससे व्यक्ति को शारीरिक रोग होने का आभास होता है।
      इस तरह से रोगी किसी गंभीर रोग से ग्रसित हो जाने वाली सोच घिरा रहता है, जैसे कि रोगी कहेगा मुझे टी० बी० या कैंसर है। समय बीतने के साथ यह सोच पहले वाले रोग से हटकर किसी दूसरे रोग पर भी केन्द्रित हो सकती है जैसे की रोगी पहले एड्स होने की बात करता था और अब कैंसर होने की। बारम्बार नकारात्मक लैब रिपोर्ट आने के बाद भी यह सोच बदलती नहीं है और दिमाग में घर करे रहती है। फ़िजीशियन के बार-बार तसल्ली देने के बाद भी रोग होने की सोच बनी रहती है।
रोग का व्यवहार
यह रोग वृतांत (episode) के रूप में बार-बार लौटकर आता है। लक्षणों की बढ़ोत्तरी और मानसिक तनाव में स्पष्ट वास्ता देखा गया है। अचानक लक्षणों का उभारना, तनाव के कारण का पता चलने, रोग से पहले अच्छी व्यवस्थित ज़िन्दगी, किसी अन्य रोग का न होना रोग से उबरने के अच्छे संकेतों में माना गया है।
इलाज
Insight Oriented Supportive या Behavior Therapy, Relaxation Therapy के साथ-साथ दवाइयों का काफ़ी अच्छा असर देखा गया है।
BODY DYSMORPHIC DISORDER
इस रोग के रोगी लगातार एक ऐसे अहसास से घिरे रहते हैं जिसमे वे अपने समान्य से दिखने वाले शरीर भद्दा/बदसूरत/टेढ़ा मानते हैं। जबकि अन्य व्यक्तियों को उसमे कोई नुक्स नज़र नहीं आता है। वह ये भी सोचते हैं कि वह दूसरों के लिए आकर्षक नहीं हैं या इस वजह से लोग उससे कटते हैं। सांत्वना या शारीरिक सुन्दरता की प्रशंसा इन पर असर नहीं करती है। अधिकतर ऐसे मरीज़ त्वचा रोग विशेषज्ञ और प्लास्टिक सर्जन के पास परामर्श लेते हुए पाए जाते हैं। इस रोग को 15-30 वर्ष की आयु में प्रारंभ होते हुए देखा गया है। अधिकतर रोगी अपने चेहरे के किसी भाग से चिंतित रहते हैं जैसे नाक का टेढ़ापन पुरुषों में ज्यादातर शारीरिक पुष्टता को लेकर यह रोग देखा गया है। रोगी को अनावश्यक ही ऐसा लगता है कि लोग उस पर हंस रहे हैं, देख रहे हैं या टिप्पणी कर रहे हैं। बार-बार आइना देखना या आईने से दूर रहना, मेक-अप या कपड़े से उस भाग को ढकना/छुपा कर रखना, सामाजिक मिलन से कतराना या ऑफिस के कमरे में बंद होकर रहने जैसा व्यवहार इन रोगियों में देखने को मिल सकता है। कुछ रोगियों में यह सोच इतनी हावी हो जाती है की वह घर में बंद होकर रह जाता है।
      यदि कथित विकार को सर्जरी द्वारा बदल भी दिया जाये तो विकृत सोच का बदल पाना असफल ही रहता है। इसलिए काउन्सलिंग और मनोरोग सम्बंधित दवाइयाँ ही इसमें कारगर होती हैं।
PAIN DISORDER
      इस रोग में आकर्षण का मुख्य कारण दर्द होता है। प्रमुख लक्षणों में किसी एक या अधिक अंगों में दर्द जिसे शारीरिक या दिमागी संरचनात्मक द्रष्टिकोण द्वारा स्थापित न किया जा सके। यह दर्द भावनात्मक चिंता और विफल कार्यक्षमता का कारण बनता है। पुरुषों की तुलना में यह रोग महिलाओं में दोगुना होता है और अधिकतर यह रोग 40-50 वर्ष की आयु में प्रारंभ होता है। यह रोग blue-collar व्यवसाय से जुड़े व्यक्तियों में अधिकतर देखा गया है।
      Pain Disorder के रोगी एक संगठित समूह के न होकर अलग-अलग स्थित दर्द से ग्रसित होते हैं जैसे कमर दर्द, सर दर्द, चेहरे का दर्द, कूल्हे का दर्द, इत्यादि। सामान्यतः इन रोगियों में लम्बे समय की मेडिकल और सर्जिकल रोगों का इतिहास होता है, वे कई चिकित्सक बदलते हैं और आग्रह करते हैं ज्यादा दवाइयों की और सर्जरी की। वे अपनी ज़िन्दगी की विपत्तियों के लिए इस दर्द को दोषी ठहराते हैं। यह रोगी अधिकतर मानसिक तनाव के होने को मना करते हैं और अपनी ज़िन्दगी को खुशहाल बताते हैं सिवाय दर्द के।

      अक्सर यह रोग अचानक से प्रारंभ होता है और कुछ ही हफ़्तों में तीव्र हो जाता है। मानसिक तनाव का न पाता चलना, नकारात्मक सोच वाली शख्सियत, न्यायायिक प्रक्रिया में लिप्तता, आर्थिक संकट या व्यसन साथ में होने को रोग के ठीक होने के लिए बुरे कारकों में माना गया है।  काउन्सलिंग और मनोरोग सम्बंधित दवाइयाँ ही इसमें कारगर होती हैं।

Dementia and Alzheimer's Disease in Hindi

 उम्रदराज़ होने के साथ यादाश्त, निर्णय लेने की क्षमता, स्तिथि/समय के ज्ञान और बौद्धिक क्षमता में आई गिरावट को dementia कहते हैं। रोग के प्रारंभिक दौर में चेतना (conciousness) में कोई फर्क देखने को नहीं मिलता है। बौद्धिक क्षमता जैसे बुद्धिमत्ता (intelligence), सीखने और याद रखने की क्षमता, भाषा, समस्या समाधान, अनुभूति (perception), ध्यान व एकाग्रता और निर्णय लेने की क्षमता पर इस रोग का असर पड़ता है। यह रोग स्थिर, प्रगतिशील, स्थायी या प्रतिवर्ती (reversible) हो सकता है। लगभग 15 प्रतिशत dementia अपने कारक के आधार पर प्रतिवर्ती होते हैं, लेकिन प्रारंभ में इलाज मिलने पर ही इन्हें प्रतिवर्तित किया जा सकता है, अन्यथा यह स्थायी हो सकता है।
      Dementia बुजुर्गों में होने वाला रोग है जो 65 वर्ष की आयु से ऊपर के व्यक्तियों में 1.5% तक पाया जाता है और 85 वर्ष की आयु के बाद 16 से 25 वर्ष तक पाया जाता है। Dementia से ग्रसित सभी रोगियों में Alzhiemer dementia 50 से 60 प्रतिशत तक पाया जाता है।
Alzhiemer के बाद दूसरे प्रमुख प्रकार में vascular dementia पाया जाता है जो अधिकतर उच्च रक्तचाप के प्रत्युत्तर में होता है सभी प्रकार के dementia में इसकी व्यापकता 15 से 30 प्रतिशत होती है। अधिकतर vascular dementia पुरुषों में और Alzhiemer dementia महिलाओं में पाया जाता है अन्य प्रकारों में सर की चोट सम्बन्धी, शराब की लत सम्बन्धी, न्यूरोलॉजी विकार सम्बन्धी, इत्यादि dementia आते हैं।
      याददाश्त में कमी dementia का प्रमुख लक्षण होता है। प्रारंभ में हाल के वाक्ये (events) में याददाश्त में कमी देखी जाती है जैसे खाना खा कर भूल जाना, रास्ता भूल जाना, दिन व समय भूल जाना, नाम भूल जाना, समान भूल जाना, इत्यादि। जैसे-जैसे रोग बढ़ता जाता है याददाश्त और भी कम होती जाती है यहाँ तक कि रोगी कपड़े पहनना, वाहन चलाना भूल जाता है और आसपास हो रही सामान्य घटनाओं को भी समझ नहीं पाता है, उसके समय व जगह का ज्ञान क्षीण पड़ता जाता है। वह बाथरूम से अपने कमरे का रास्ता भूल सकता है। इसी तरह से वस्तुओं के नाम व प्रयोग को भूल सकता है। अपनी बात कहने के लिए शब्दों के चयन में दिक्कत हो सकती है। शुरुआती दौर में रोग का ज्ञान रहने पर रोगी भुलक्कड़पन को छिपाने के लिए खुद को समाज से दूर कर लेता है और अत्यधिक सुव्यवस्थित (orderliness) को अपनाने की कोशिश करता है।
      इन कारणों से रोगी के व्यक्तित्व में आये बदलाव परिवार के लिए परेशानी का कारण बनते हैं। रोगी कुंठित व अमिलनसार हो जाता है उसमे भ्रमित सोच उत्पन्न हो जाती है जिससे वह घरवालों पर अनावश्यक शक करता है और शत्रुतापूर्ण व्यवहार करता है। उसका व्यक्तित्व चिडचिडा व ‘फट पड़ने’ वाला हो जाता है। 20-30 प्रतिशत रोगियों को काल्पनिक आवाजें सुनाई देने लगती हैं। बिना कारण के वे जोर से रोने या हंसने का भाव व्यक्त कर सकते हैं और 40-50 प्रतिशत रोगियों में अवसाद व घबराहट सम्बन्धी लक्षण पाए जाते हैं। ज्ञात हो कि सामान्य तौर पर उम्र बढ़ने पर याददाश्त में कुछ कमी आती है लेकिन यह बहुत कम स्तर पर होती है और जीवन के विभिन्न आयामों पर असर नहीं डालती है।
      सामान्यतः यह रोग पचास व साठ के दशक में प्रारंभ होता है जो धीरे-धीरे बढ़ता जाता है कुछ रोगियों में यह तेज़ गति से बढ़ता है इस रोग के शुरू होने के पश्चात् औसतन ज़िन्दगी 1 से 20 वर्ष तक हो सकती है
      अन्य रोग के प्रत्युत्तर में हुआ यह रोग (secondary dementia) इलाज से ठीक किया जा सकता है जैसे शुगर, उच्च रक्तचाप, थाइरोइड, इत्यादि। यदि इन रोगों का पहले से पाता हो तो dementia को आरम्भ होने से रोका जा सकता है। व्यवहारिक इलाज के साथ दवाइयों की भी इस रोग को सँभालने में अहम भूमिका होती है।
Dementia (डिमेंशिया):- देखभालकर्ता के लिए निर्देश
1.    communication (विचारों का आदान-प्रदान)

·         सरल व सीधी भाषा का प्रयोग करें ज़रुरत पड़ने पर अपनी बात दोहराएं
·         आँख से आँख मिलाकर व मुस्कुरा कर बात करें
·         ऐनक व सुनने की मशीन यदि रोगी इस्तेमाल करता है तो इन्हें प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करें
·         अधिक शोर व ध्यान भंग करने वाली कारकों को दूर रखें
2.    याददाश्त बढाएं

·         बार-बार याददाश्त चेक ना करें
·         बड़े अक्षरों वाला कैलेंडर कमरे में रखें
·         सामान की सूची बनाकर कमरे में रखें
·         दराजों, अलमारियों व दरवाजे को चित्रों द्वारा या लिखित रूप में दर्शायें जैसे शौच के स्थान को चित्र या लिख कर इंगित करें
·         महत्वपूर्ण फ़ोन नम्बर की सूची रोगी को साथ रखने दें
·         घर में आने वाले व्यक्ति को हमेशा नाम व रिश्ता बताकर मिलवाएं
3.    रोज़मर्रा की ज़रूरतों को व्यवस्थित करना

·         रोज़मर्रा में किये जाने वाले काम को व्यवस्थित रखें परन्तु ज़रुरत पड़ने पर इसे बदलें भी
·         घर के सभी सदस्य मिलकर मदद करें
·         वर्जिस करने के लिए प्रोत्साहित करें
·         व्यक्तिगत गोपनीयता का ख्याल रखें
4.    अन्य बातें

·         संभव हो तो पसंदीदा खाना एक साथ बनाएं
·         सुबह घूमने साथ जायें
·         हाथ पकड़कर बात करें और गले भी लगायें
·         मधुर संगीत सुनें
·         पुरानी फ़ोटो एल्बम एक साथ देखें और भूले गए व्यक्तियों के बारे में विस्तार से बताएं

·         पुराने दोस्त के घर ले जायें 

Saturday 23 April 2016

Mania And Bipolar Disorder in Hindi

MANIA AND BIPOLAR DISORDER
मूड डिसऑर्डर (Mood Disorder) के तहत विकारों का एक बड़ा समूह आता है जिसमे रोगी के मूड के फ़ेरबदल और इससे सम्बंधित लक्षण बहुतायत में मिलते हैं जैसे डिप्रेशन, मेनिया, bipolar disorder, dysthymia और cyclothymia। मूड डिसऑर्डर एक लक्षणों का संग्रह होता है जोकि हफ़्तों और महीनों तक बने रह सकते हैं। मूड का फ़ेरबदल नॉर्मल, अतिप्रसन्न या उदासी के रूप में प्रस्तुत हो सकता है। ऐसे तो समान्य व्यक्ति भी मूड के फ़ेरबदल को महसूस कर सकता है लेकिन वे इन फ़ेरबदल को नियंत्रित करने में सक्षम होते हैं जबकि डिसऑर्डर होने पर रोगी इसे नियंत्रित नहीं कर सकता है। यहाँ हम bipolar disorder के बारे में चर्च करेंगे लेकिन इसे समझने से पहले मेनिया (Mania) को समझना होगा।
मेनिया (MANIA)
       मेनिया रोग में रोगी अतिप्रसन्न/चिडचिडा या उग्र मूड के साथ-साथ उत्तेजना, हानिकारक अत्यधिक आत्मविश्वास, बड़ी-बड़ी बातें करने वाला व्यवहार दर्शाता है। अतिप्रसन्नता, चिडचिडापन या उग्र मूड मेनिया का मुख्य लक्षण होता है। अनभिज्ञ चिकित्सक रोग के इस लक्षण को पहचानने में असमर्थ हो सकता है इसी तरह रोग के दौरान संपर्क में आने वाला अनजान व्यक्ति भी इस बदलाव से अनभिज्ञ रह सकता है। समीपता से संपर्क में रहने वाले व्यक्ति इस बदलाव को असमान्य महसूस करते हैं और जल्दी से पकड़ पाते हैं। मेनिया की शुरुआत होने पर मूड अतिप्रसन्नता दिखाई देता है और रोग बढ़ने की परिस्तिथि में यह चिडचिडापन और गुस्से का रूप धारण कर लेता है।
       मेनिया में मूड के साथ अन्य लक्षण हो सकते हैं जैसे
·       अत्यधिक बोलना, बोलते रहना,
·       अत्यधिक शारीरिक शक्ति का अहसास होना जिसके फलस्वरूप शारीरिक गतिविधियों का बढ़ जाना,
·       नींद कम आना, नींद की कमी का अहसास ना होना,
·       सामाजिक बंधनों के विपरीत व्यवहार करना जैसे बड़ों के सामने दुर्व्यवहार, गाली-गलौच करना, स्त्रियों का सम्मान न करना, तर्कसंगत वस्त्रों को ना पहनना, इत्यादि,
·       विषय, वस्तु या कार्य में एकाग्रता की कमी,
·       अत्यधिक आत्मविश्वास जैसे पैसे, ताकत और नए कार्यों को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करना,
·       तर्कराहित प्लान बनाना, पैसे का अनावश्यक उपयोग,
·       पूजा-पाठ, धर्म सम्बन्धी या दीनी बातों का बढ़ जाना इसी तरह राजनैतिक, आर्थिक, सेक्स-सम्बन्धी विचारों का बढ़ना,
·       अनावश्यक मांगे बढ़ना जैसे पैसे की, कपड़ों की, खाने की वस्तुओं की, इत्यादि,
इस प्रकार के लक्षण पिछले सात दिनों से ज्यादा समय से उत्पन्न हुए हों और बरकरार रहें या बढ़ते जायें तो इसे मेनिया रोग कहा जाता है।
अवसाद (Depression)
       अवसाद की जानकारी के लिए ब्लॉग के ‘depression’ वाला शीर्षक पढ़ें।
Bipolar Disorder
       Bipolar Disorder में रोगी के जीवनकाल में कभी मेनिया तो कभी अवसाद की स्तिथि बनती रहती है। यानि कि रोग बार-बार उभर कर आता है कभी मेनिया के रूप में तो कभी डिप्रेशन के रूप में।
       Bipolar Disorder की व्यापकता विश्व में 1% है और इसके होने की संभावना पुरुषों और स्त्रियों में समान होती है। मेनिया की स्तिथि पुरुषों में और डिप्रेशन की स्तिथि स्त्रियों में ज्यादा देखे जाते हैं। इसकी शुरुआत बाल्यकाल से लेकर 50 वर्ष तक की उम्र में भी देखी गयी है।
कारक
       जैविक कारक
             दिमाग के मुख्य रसायन जैसे सेरोटोनिन, नॉर-एपिनेफ्रिन और डोपामिन के बदलाव को इस रोग से जोड़कर देखा गया है। अनुवांशिक (genetic) कारकों की भी इस रोग में अहम भूमिका होती है जैसे कि इस रोग से ग्रसित रोगियों के माता-पिता या निकट सम्बन्धियों यह रोग 8–18  प्रतिशत तक पाया जाता है। 50% रोगियों के माता-पिता में अन्य किसी प्रकार का मूड डिसऑर्डर देखा गया है। यदि माता और पिता दोनों में यह रोग होता है तो बच्चों में इसके होने की संभावना 50 से 75 प्रतिशत तक देखी गयी है।
रोग का व्यवहार
             Bipolar Disorder अधिकतर, पुरुषों में 75% और महिलाओं में 67%, अवसाद से शुरू होता है। लगभग 10-20 प्रतिशत रोगियों में मेनिया ही बार-बार होता है। मेनिया के लक्षण लगभग 7 दिनों में पूर्ण रूप से उभर आते हैं। यदि इलाज ना मिले तो यह 3 महीने तक चल सकता है और अगली बार दोबारा होने की संभावना जल्द होती होती है। हर वृतांत के बाद लक्षण और भी उग्र और जल्द ठीक ना हो सकने वाले होते हैं। प्रथम वृतांत के बाद 90 प्रतिशत रोगियों में यह रोग दोबारा आता है। लेकिन लम्बे समय तक इलाज द्वारा इसकी संभावना को काफी कम किया जा सकता है और जीवन का बड़ा हिस्सा नॉर्मल/सामान्य होकर गुज़ारा जा सकता है।
       अच्छी व्यावसायिक स्तिथि का होना, परिवार का समर्थन और व्यसन का ना होना भविष्य में रोग ना होने के अच्छे कारकों में मन गया है।
इलाज
       जब रोग पूरे जोर पर हो तो उग्रता और उत्तेजना को नियंत्रित करने के लिए अस्पताल में भर्ती होकर इलाज की ज़रुरत पड़ सकती है। रोग धीरे-धीरे काबू में आता है और इलाज लम्बे समय तक चलता है।
       दवाइयों के प्रकार में mood stablizer ( sodium valproate, lithium, carbamazapine, इत्यादि) का प्रयोग होता है।

       अतिउग्र रूप वाली स्तिथि में इंजेक्शन अथवा electroconvulsive therapy का प्रयोग किया जा सकता है। भ्रांतियों से परे electrocovulsive therapy एक कारगर और सुरक्षित इलाज की विधि है। 

Friday 22 April 2016

Generalized Anxiety Disorder (GAD) in Hindi

GENERALIZED ANXIETY DISORDER (GAD) in Hindi
              GAD में रोज़मर्रा के कार्यों और क्रियाओं के प्रति अत्यधिक और अनावश्यक घबराहट बनी रहती है। जिन कार्यों को व्यक्ति रोज़ाना करता है उनसे घबराहट बनी रहती है और उनकी चिंता से मानसिक और शारीरिक तनाव के स्तिथि बनी रहती है। रोगी खुद को relax/तनावरहित महसूस नहीं कर पाता है। यह चिंताएं इतनी अधिक होती हैं कि इन्हें रोगी नियंत्रित नहीं कर पाता है और ये चिडचिडापन, अनिद्रा, बैचैनी और मांसपेशियों के तनाव में परिवर्तित हो जाती हैं। यह घबराहट इतनी अधिक होती है कि रोगी के जीवन और दिनचर्या को प्रभावित करती हैं। मांसपेशियों में तनाव की वजह से बैचैनी और सरदर्द बना रहता है। दिमागी कोशिकाओं के उत्तेजित बने रहने से सांस चढ़ना, पसीना आना, धड़कन बढ़ना और पेट में विकलता बनी रह सकती है। घबराहट के एवज में अत्यधिक चौकन्नापन से चिडचिडापन मन रह सकता है।
       इस रोग से ग्रसित ज्यादातर मरीज़ शारीरिक लक्षणों की वजह से फिजीशियन (physician) के पास पहुँचते हैं जैसे घबराहट से उत्पन्न लूज़ मोशन। इसी तरह अन्य शारीरिक लक्षणों की वजह से यह रोगी ज्यादातर जनरल फिजीशियन, कार्डियोलॉजिस्ट, छाती रोग विशेषज्ञ, उदर रोग विशेषज्ञ या अन्य के पास भटकते रहते हैं।
इलाज
       दवाइयों के साथ काउन्सलिंग से इलाज काफी कारगर होता है। 


Post Traumatic Stress Disorder in Hindi

POST TRAUMATIC STRESS DISORDER in Hindi
सामान्यतः यह रोग प्रारंभ होता है जब कोई व्यक्ति देखता है, सुनता है या संदर्भित होता है ऐसे किसी भयावह वाक्ये के बारे में जो कि हृदयविदारक हो। रोगी इस अनुभव से डर और असहाय होने की प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। वह उस घटना की याद को बार-बार अनुभव करता है जिससे उसे तीव्र घबराहट का अहसास होता है और कोशिश करता रहता उस घटना को ना याद करने की। यह घटनाएं हो सकती हैं जैसे युद्ध, उत्पीड़न, यातना, अत्याचार, प्राकृतिक आपदा, सड़क दुर्घटना, इत्यादि। यह घटनाएं स्वप्न में या रोजमर्रा में रोगी के दिमाग में घूमती हैं रोगी इसकी याद को मिटाने की मानसिक कोशिश करता है और वह शारीरिक सुन्नपन और अतिउत्तेजना महसूस करता है। साथ में वह अवसाद, घबराहट और एकाग्रता में कमी को भी महसूस करता है और साथ-साथ रोगी में अपराधबोध की भावना, चिडचिडापन, आक्रामकता तथा व्यसन (addiction) के लक्षण भी मिल सकता हैं।
              आमतौर पर इस तरह की घटनाएँ युद्ध में होती हैं इसलिए पूर्व में इस रोग को soldier’s heart, shell shock, combat neurosis, या operational fatigue के नामों से भी जान जाता था। इस रोग की जीवनकालिक व्यापकता लगभग 8 प्रतिशत है।
रोग का व्यवहार
       PTSD रोग सामान्यतः किसी दुर्घटना के बाद प्रारंभ होता है। घटना के बाद रोग प्रारंभ होने में 1 सप्ताह से लेकर 30 वर्षों का विलम्ब देखा गया है। लक्षण समय के साथ कम-ज्यादा होते रहते हैं और तनाव की स्तिथि में तीव्र हो सकते हैं। लक्षणों का तेज़ी से उभारना, रोग से पहले अच्छी व्यवस्थित ज़िन्दगी, मजबूत पारिवारिक सहायता, अन्य मानसिक/शारीरिक रोग का ना होना और व्यसन का ना होना रोग से जल्द उबरने के अच्छे संकेत होते हैं।
इलाज
       PTSD के रोगियों को सहायता, प्रोत्साहन, relaxation exercise के साथ-साथ दवाइयों द्वारा इलाज किया जाता है जिसके काफी अच्छे परिणाम देखे गए हैं।  
      

       

Tuesday 12 April 2016

Attention Deficit Hyperactivity Disorder (ADHD)- in Hindi

ATTENTION DEFICIT HYPERACTIVITY SYNDROME (ADHD)
      
    ADHD बच्चों में होने वाला विकार है। यूँ तो अमूमन लगभग सभी बच्चों में कभी ना कभी असंयमित व्यवहार दिखता है। वे अचानक से गतिमान हो सकते हैं, लगातार शोर मचाते रह सकते हैं, अपनी बारी आने में जल्दबाजी कर सकते हैं या आसपास की चीज़ों से भिड़ते रह सकते हैं। कभी कभी वे दिवास्वप्न की स्तिथि में दिखाई देते हैं। और काम शुरू करने बाद पूरा नहीं कर पाते हैं।
      
   लेकिन कुछ बच्चों में यह व्यवहार कभी-कभार होने वाले वाले व्यवहार से अधिक होता है। ADHD से ग्रसित बच्चों की यह व्यवहारिक समस्याएं तीव्र और बहुतायत में होती हैं जो उनके सामान्य जीवनयापन में बाधा डालती हैं।

   इन बच्चों को अपने भाई-बहनों और सहपाठियों के साथ-साथ बढ़ने में परेशानियाँ होती हैं। एकाग्रता में कमी होने के कारण पढाई दिमाग में बैठती नहीं है और आवेगपूर्ण होने के कारण भौतिक खतरे बने रहते हैं। ऐसे व्यवहार के कारण यह बच्चे अक्सर बुरे बच्चों की श्रेणी में रख दिए जाते हैं। इलाज प्राप्त ना हो सकने की परिस्तिथि में ADHD से ग्रसित बच्चे गंभीर व जीवनपर्यंत चलने वाले बुरे प्रभाव से जूझते रहते हैं जैसे की पढाई में कमज़ोर रह जाना, रिश्ते निभाने में असफलता, क़ानूनी प्रक्रिया में फंस जाना, नौकरी को ना संभाल पाना, इत्यादि।

   ADHD का कारगर इलाज मौजूद है। यदि आपका बच्चा ADHD से ग्रसित है तो उसके लिए विभिन्न प्रकार के इलाज को अपनाया जा सकता है जिसके फलस्वरूप वह खुशहाल व स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकता है। एक अभिभावक के रूप में इसके इलाज में आपका भी महत्वपूर्ण योगदान होता है।


ADHD क्या है:
यह बच्चों के कई प्रकार के विकारों में से एक है। यह एक दिमागी विकार है जो बच्चे को उसके व्यवहार को नियंत्रित करने में कठिनाई पैदा करता है। यह स्कूल जाने वाले 4 -12 % बच्चों को प्रभावित करता है। लड़कियों की तुलना में यह लड़कों में तीन गुना ज्यादा पाया है।


ADHD के लक्षण क्या हैं:
      ADHD में तीन संभागीय लक्षण पाए जाते हैं जो नीचे तालिका में दर्शाए गए हैं:
तालिका – 1 : ADHD के लक्षण
लक्षण
किस प्रकार से बच्चों में दिखता है।
एकाग्रता में कमी
(Inattention)
·       ध्यान केन्द्रित ना कर पाना या दिन में स्वप्न देखते हुए जैसे प्रतीत होना।
·       सामने-सामने बात करने पर ऐसा प्रतीत होना जैसे आपकी बात सुन ही नहीं रहा है।
·       पढ़ते समय या खेल में आसानी से ध्यान भंग हो जाना।
·       समझी हुई बातों/कार्यों में गलती करना।
·       कई चरणों में पूर्ण होने वाले कार्य न कर सकना/कार्य अधूरे छूटना।
·       क्रिया कलापों में अस्तव्यस्तता नज़र आना।
·       महत्वपूर्ण सामान/कार्यों को भूल जाना।
·       ऐसे कार्यों को करने में आना-कानी करना जिसमें एकाग्र होकर बैठना पड़े।
अत्यधिक चंचलता
(Hyperactivity)
·       लगातार चलायमान रहना जैसे कि शरीर में मोटर लगी हो।
·       लम्बे समय तक टिक कर ना बैठ पाना।
·       बैठे होने पर भी बदन का हिलना-डुलना और हाथ-पैरों का चलते रहना।
·       अत्यधिक बोलते रहना।
·       अत्यधिक दौड़ना, कूदना या फ़र्निचर पर चढ़ना जहाँ इसकी इजाज़त न हो।
·       खेल में शांति ना बनाये रख पाना।
आवेग
(Impulsivity)
·       बगैर सोचे समझे कार्य कर डालना या बोल पड़ना।
·       ट्रैफिक का ध्यान ना रखते हुए दौड़ पड़ना।
·       अपनी बारी आने का इंतज़ार ना कर पाना।
·       पूरा सवाल सुने बिना उत्तर देना।
·       दूसरों के वार्तालाप में बाधा बनना।



ADHD के विभिन्न प्रकार कौन कौन से हैं:
ADHD से ग्रसित सभी बच्चों में सभी लक्षण नहीं पाए जाते है इनका विभाजन इस प्रकार से है:
1.      संयुक्त एकाग्रता, चंचलता व आवेग वाले लक्षण – इस प्रकार में बच्चे तीनो प्रकार के लक्षणों से प्रभावित होते हैं। यह प्रकार सबसे ज्यादा देखा जाता है।
2.      केवल एकाग्रता में कमी वाला प्रकार – केवल एकाग्रता में कमी होने से यह प्रकार अक्सर अनदेखा रह जाता है। यह लड़कियों में ज्यादा पाया जाता है।
3.      चंचल/आवेग वाला प्रकार – यह सबसे कम पाया जाने वाला प्रकार है।

सरल शब्दों में कैसे समझ सकता/सकती हूँ कि मेरे बच्चे को ADHD है?
     
   याद रखें समय समय पर एक सामान्य बच्चा भी ऐसे लक्षणों को दर्शा सकता है, जैसे की घर या स्कूल में तनाव या बोर होने की स्तिथि में। इसका मतलब यह नहीं कि उसे ADHD है। कुछ सवाल जो आपकी समझ में मदद कर सकते हैं जैसे की :
  • ·       ठीक बुद्धि होने के बाद भी बच्चा पढाई में ठीक नहीं कर पा रहा है,
  • ·       अध्यापक द्वारा लक्षणों के प्रकार की टिप्पणी करना,
  • ·       क्या वह स्कूल में खुश है,
  • ·       कक्षाकार्य या गृहकार्य को पूरा कर पाता है,
  • ·       किसी अनचाहे व्यवहार की वजह से आप चिंता में रहते हैं,


   जेहन में और भी कोई बात हो तो अपने मनोचिकित्सक से बात करें ADHD के निदान (diagnosis) के लिए एक से ज्यादा परिवेश के व्यक्तियों द्वारा दी गयी जानकारी भी महत्वपूर्ण होती है जैसे अध्यापक।


कारण:
ADHD के मूल कारणों का अभी तक पाता नहीं लगाया जा सका है
·       यह एक दिमागी कोशिकाओं में बदलाव द्वारा होने वाला विकार है कभी कभी माता-पिता में यह विकार ज्ञात होता जब वे अपने बच्चे के लिए विशेषज्ञ से मिलते हैं।
·       दिमाग के केंद्र में जो एकाग्रता को नियंत्रित करता है, उसकी क्रिया-प्रतिक्रिया में कमी देखी गयी है।
·       गर्भवती होने के दौरान धुम्रपान या शराब के सेवन की समीपता से ADHD को जोड़कर देखा गया है।
·       सर में गहरी चोट से जोड़कर देखा गया है।


इलाज:
      एक बार ADHD का निदान होने के बाद इलाज द्वारा काफी सकारात्मक नतीजे देखे गए हैं। हालांकि ADHD के इलाज में कई तरीके अपनाये जाते हैं, लेकिन बालक विशेष के लिए विशेष प्रारूप तैयार किया जाता है। इलाज के मुख्या बिंदु इस प्रकार से हैं:
·       दीर्घकाल में चलने वाली इलाज की प्रक्रिया जिसमे-
o   विशेष व्यवहार को टारगेट करना
o   प्रत्येक विजिट की क्रिया प्रणाली बनाना
o   समय-समय पर विभिन्न बिन्दुओं को निगरानी में रखना
·       ADHD के बारे में जागरूक करना,
·       डॉक्टर, अभिभावक, अध्यापक, बच्चे और अन्य को टीम की तरह जोड़ना,
·       दवाइयाँ,
·       Behavior therapy including parental training,
·       बच्चे और परिवार की काउन्सलिंग।
ADHD का इलाज लम्बे समय तक चलने वाली एक प्रक्रिया कह सकते हैं जिससे बच्चे का भविष्य बेहतर किया जा सकता है। और जानकारी के लिए मनोचिकित्सक से मिलें।