Tuesday 21 June 2016

Somatoform Disorder in Hindi


Somatoform शब्द ग्रीक शब्द ‘soma’ से लिया गया है जिसका अर्थ होता है शरीर और मनोरोग में Somatoform Disorder का वर्गीकरण उन रोगों का होता है जिसमें शारीरिक लक्षण मुख्यतः होते हैं। इस प्रकार के रोगों में बाहरी कारकों के न होने के बावज़ूद शारीरिक लक्षण महसूस होते हैं और वह इन्हें गंभीर रोग मान बैठता है। इस रोग में मन और शरीर आपस में सामंजस्य ठीक से नहीं बैठा पाते हैं। शारीरिक लक्षण होने बावज़ूद भी लैब जांचे लगातार सामान्य पाई जाती है और बाहरी कारक नज़र नहीं आता।
      Somatoform Disorder के वर्गीकरण में मुख्यतः पांच प्रकार के रोग आते हैं क्रमशः
1.       Somatization Disorder
2.       Conversion Disorder
3.       Hypochondriasis
4.       Body Dysmorphic Disorder
5.       Pain Disorder

Somatization Disorder
Somatization Disorder में कई शारीरिक लक्षण एक साथ होते हैं जिन्हें शारीरिक जांच और लैब जांच में प्रमाणित नहीं किया जा सकता है अर्थात जांचे समान्य/नॉर्मल आती हैं। सामान्यतः यह रोग 30 वर्ष की आयु में प्रारंभ हो जाता है और अन्य somatoform disorder से यह लक्षणों की विविधता (multiple) की वजह से भिन्न होता है। यह लम्बे समय तक चलने वाला रोग होता है और इससे मानसिक तनाव उत्पन्न होता है, सामाजिक व व्यावसायिक कार्यक्षमता पर असर पड़ता है और रोगी अनावश्यक/अत्यधिक चिकित्सीय सलाह/जांच से गुज़रता है या इसकी मांग करता है।
   पुरुषों की तुलना में यह रोग स्त्रियों में 5-20 गुना तक ज्यादा पाया जाता है। ज्यादातर यह रोग कम शिक्षित और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में देखा गया है और यह रोग 30 वर्ष की आयु से पहले प्रारंभ हो जाता है।
   इस रोग के मूल कारणों का पता सही सही नहीं लगाया जा सका है। मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार यह लक्षण तनावभरी भावनाओं को व्यक्त करने का अचेतनमन प्रयास होता है या अपनी भावना का प्रतीकात्मक रूप से प्रस्तुत करने का तरीका है, जिसमे व्यक्ति का चेतनमन अनभिज्ञ रहता है। यह उन लोगों में भी देखा गया है जिनके परिवार में अस्थिरता की स्तिथि होती है या जिन्हें शारीरिक प्रताड़ना से गुज़ारना पड़ता है। जैविक कारणों में यह माना गया है कि कोशिकाओं को मिलने वाली नरंतर विद्युत तरंगों से रोगी अभ्यस्त (habituate) नहीं हो पाता है। अनुवांशिक शोधों में, परिवार में प्रथम रक्त्सम्बंधियों में यह रोग 10-20 प्रतिशत तक पाया जाता है
निदान (Diagnosis)
   Somatization Disorder के निदान के लिए चार तरह के विभिन्न अंगों में दर्द, दो तरह के उदर सम्बन्धी विकार, एक सेक्स सम्बन्धी विकार और एक तंत्रिका (neuro) सम्बंधी लक्षण का होना निर्धारित है; और इनमे से किसी भी लक्षण की शारीरिक जांच या लैब जांच में पुष्टि न होती हो।
      Somatization Disorder के प्रस्तुतीकरण में लम्बे समय से चलने वाली शारीरिक शिकायतों का जटिल व पेचीदा मेडिकल इतिहास होता है। इसके लक्षण कुछ इस तरह से हो सकते हैं: जैसे उलटी-उबकाई आना (गर्भावस्था के दौरान होना वाली से अलग), निगलने में परेशानी, हाथ-पैरों में दर्द, सांस चढ़ना (शारीरिक कसरत से अलग या प्रमाणित रोगों द्वारा निर्धारित रोगों से अलग), याददाश्त में फर्क, अधिकतर समय बीमार बने रहना की सोच।
   मस्तिष्क तंत्र के विकार जैसे दिखने वाले लक्षण हो सकते हैं जैसे शरीर पर अनियंत्रण, फलिज़, शरीर के भाग में कमजोरी, निगलने में परेशानी, गले में गोला जैसा अहसास, आवाज़ न निकलना, पेशाब बंद होना, दो वस्तुएं दिखना, अंधापन, बहरापन, मिर्गी जैसी गतिविधि।
   ऐसे रोगियों में अंतर-व्यक्ति (inter-personal) सामंजस्य खराब होता है और वे तनावरहित नहीं रह पाते हैं। इस तरह से वे अवसाद और घबराहट के लक्षणों से भी घिर जाते हैं। वैसे तो उद्देश्यपूर्ण आत्महत्या के विचार कम देखे गए हैं अपितु खुद को नुक्सान पहुंचाने की धमकी देखने को मिल सकती है। यदि रोगी साथ में व्यसन का भी शिकार है तो उद्देश्यपूर्ण आत्महत्या के विचार देखने को मिल सकते हैं।
   सम्पूर्ण रूप से देखा जाये तो ऐसे रोगियों का मेडिकल इतिहास अनावश्यक विस्तृतता से भरी हुई, असंक्षिप्त, अस्थिर, असंगत और अव्यवस्तिथ मिलती है। रोगी अपनी सम्पूर्ण परेशानियों को नाटकीय रूप से, भावुकता से और अतिशयोक्तिपूर्ण ढंग से पेश करता है। वे लक्षणों के कालिक अनुक्रम में संभ्रम (confusion) पैदा करते हैं और वर्तमान व भूतकाल के लक्षणों में अंतर नहीं कर पाते हैं।
रोग का व्यवहार
   यह रोग लम्बे समय तक चलने वाला रोग होता है और दुखदायी होता है। सामान्यतः यह 30 वर्ष की आयु के पहले प्रारंभ हो जाता है। लक्षणों की तीव्रता और नए लक्षणों की उत्पत्ति लगभग 6-9 महीनों तक चलती है। कम तीव्र लक्षणों वाली स्तिथि लगभग 9-12 महीनों तक रह सकती है कभी कभार ही ऐसा होता है कि रोगी एक साल तक चिकित्सक से परामर्श न ले।
इलाज
   इस रोग के बेहतर इलाज की संभावना तब होती है जब रोगी एक मनोचिकित्सक के संपर्क में रहे और उसके मार्गदर्शन पर अमल करे। परामर्श की अवधी सीमित रहे और गैर ज़रूरी जांचों से बचना चाहिए। अन्य प्रमाणित शारीरिक रोग के साथ में होने पर अवश्य उस पर ध्यान देना चाहिए और जांच व इलाज चलना चाहिए।
Psychotherapy/Counselling इस रोग का आधारभूत इलाज होता है जो लम्बे समय तक चलने वाली प्रक्रिया होती है।
CONVERSION DISORDER
   तीव्र मानसिक तनाव की स्तिथि में शरीर के क्रियाकलाप में आये नकारात्मक बदलाव जिसे शारीरिक संरचना के आधार पर प्रमाणित न किया जा सके उसे Conversion Disorder कहते हैं। इस रोग में न्यूरोलॉजी से सम्बंधित रोग जैसे दिखने वाले लक्षण होते हैं लेकिन विस्तार से जांच करने पर ये लक्षण न्यूरोलॉजी या मेडिसिन के विकार नहीं पाए जाते हैं। ये लक्षण हो सकते हैं जैसे फलिज़, अंधापन, सुन्नपन, गर्दन टेढ़ा होना, मिर्गी जैसा, बोल बंद होना, गिरना, चाल बदलना, बहरापन, उलटी, गले में गोला महसूस होना, दस्त, पेशाब रुकना, इत्यादि।
व्यापकता
इस रोग के कुछ लक्षण बहुत तीव्र न होकर हलके रूप में पाए जाते है जो एक तिहाई लोगों में मिल सकते है, कम तीव्र होने की वजह से चिकित्सीय सेवाओं तक उन्हें नहीं लाया जाता है। अलग-अलग शोधों में इसकी व्यापकता 5-15 प्रतिशत तक पाई गयी है, पुरुषों के मुकाबले यह रोग महिलाओं में 2-10 गुना तक ज्यादा पाया जाता है। बाल-अवस्था और युवाओं में यह रोग ज्यादा पाया जाता है। शोधों के अनुसार यह ग्रामीण जनता, कम पढ़े लिखे, कम बुद्धि वाले और कमजोर आर्थिक स्तिथि वाले लोगों में देखा गया है।
कारक
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इसके कई सिद्धांत हैं जैसे अंतर्मन के संघर्ष का दमन (repression of interpsychic conflict), प्राकृतिक/स्वाभाविक आवेग में विरोधाभास और इसकी अभिव्यक्ति पर रोक या यह अन्य को आकर्षित करने/रखने भावाभियक्ति भी हो सकती है। यह अवाचनीय तरीका हो सकता है दूसरों के व्यवहार को बदलने का या नियंत्रित करने का।
जैविक कारणों की अभी तक सही सही स्थापना नहीं हो पाई है, परन्तु दिमाग के प्रभावी गोलार्ध में रासायनिक क्रिया/प्रतिक्रिया की कमी देखी गयी है।
लक्षणों का प्रस्तुतीकरण
फालिज़, अंधापन, और बोल बंद होने वाले लक्षण सबसे अधिक प्रस्तुत होते हैं। सामान्यतः यह क्रोधित, आश्रित, असामाजिक, और नाटकीय प्रवृत्ति वाले चरित्र के साथ देखने को मिलता है। इसमें अवसाद और घबराहट सम्बन्धी रोग भी साथ-साथ हो सकते हैं। Conversion Disorder के लक्षणों के प्रस्तुतीकरण में और असल में हुए न्यूरोलोजिक विकार के शारीरिक जांच में असमानता का होना जैसे सुन्नपन का प्रारूप (pattern) अलग होना, सुन्नपन का बेहतरीन सीमांकन (perfect demarcation) का मिलना; अन्धपन, बहरापन, और अन्य दृष्टिविकारों की जांचों में दिमागी संरचना का सही पाया जाना जैसे CT Scan और MRI-Brain। विकार की तीव्रता का बढ़ जान जब उस पर ध्यान दिया जा रहा हो। चाल के विकार में रोगी का न गिरना और गिरने की स्तिथि में चोट का न लगना और EMG (Electromayogram) का समान्य आना।
रोग का व्यवहार
   25% रोगी तनाव की स्तिथि में दोबारा इस रोग से ग्रसित होते हैं। अचानक लक्षणों का उभारना, तनाव के कारन का पाता चलने, रोग से पहले अच्छी व्यवस्थित ज़िन्दगी, किसी अन्य रोग का न होना रोग से उबरने के अच्छे संकेतों में माना गया है।
इलाज
Insight Oriented Supportive या Behavior Therapy, Relaxation Therapy के साथ-साथ दवाइयों का काफ़ी अच्छा असर देखा गया है।

HYPOCHONDRIASIS  
                इस रोग में रोगी का मन किसी घातक रोग के हो जाने के या उसके होने के डर से घिरा रहता है। ये विचार शरीर में हुई हलचल या अहानिकारक लक्षणों के महसूस करने से उत्पन्न होता है जिसका कोई चिकित्सीय आधार नहीं होता है। Hypochondriasis शब्द प्राचीन मेडिकल शब्द hypochondrium से से लिया गया है जिसका अर्थ होता है ‘below the ribs’ या ‘पसलियों के नीचे’ क्योंकि इस रोग के ज्यादातर रोगी उदर सम्बन्धी लक्षणों के साथ प्रस्तुत होते हैं। रोगी के मन के इस अन्यथा सोच से घिरे रहने की वजह से उसके जीवन के व्यक्तिगत, व्यवसायिक और सामाजिक कार्यक्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है और वह अन्य ज़रूरी कार्यों को दरकिनार कर देता है।
व्यापकता
      एक शोध के अनुसार एक फ़िजीशियन की क्लिनिक में ऐसे रोगी 4-6 प्रतिशत तक हो सकते हैं और अधिकतम 15 प्रतिशत तक हो सकते हैं। सामान्यतः यह रोग 20-30 वर्ष की आयु में प्रारंभ हो जाता है।
कारक
      इस रोग में रोगी का दिमाग सामान्य सी होने वाली शारीरिक प्रतिक्रिया को बढ़ा-चढ़ाकर पढ़ता/महसूस करता है। व्यक्ति के पेट में वायु का दवाब, जो की नॉर्मल होता है, दर्द के रूप में महसूस होता है। रोगी की तंत्रिकाएं शरीर की समान्य प्रतिक्रिया पर भी विध्युत तरंगे दिमाग को अधिक मात्रा में सन्देश पहुँचाने लगती हैं जिससे व्यक्ति को शारीरिक रोग होने का आभास होता है।
      इस तरह से रोगी किसी गंभीर रोग से ग्रसित हो जाने वाली सोच घिरा रहता है, जैसे कि रोगी कहेगा मुझे टी० बी० या कैंसर है। समय बीतने के साथ यह सोच पहले वाले रोग से हटकर किसी दूसरे रोग पर भी केन्द्रित हो सकती है जैसे की रोगी पहले एड्स होने की बात करता था और अब कैंसर होने की। बारम्बार नकारात्मक लैब रिपोर्ट आने के बाद भी यह सोच बदलती नहीं है और दिमाग में घर करे रहती है। फ़िजीशियन के बार-बार तसल्ली देने के बाद भी रोग होने की सोच बनी रहती है।
रोग का व्यवहार
यह रोग वृतांत (episode) के रूप में बार-बार लौटकर आता है। लक्षणों की बढ़ोत्तरी और मानसिक तनाव में स्पष्ट वास्ता देखा गया है। अचानक लक्षणों का उभारना, तनाव के कारण का पता चलने, रोग से पहले अच्छी व्यवस्थित ज़िन्दगी, किसी अन्य रोग का न होना रोग से उबरने के अच्छे संकेतों में माना गया है।
इलाज
Insight Oriented Supportive या Behavior Therapy, Relaxation Therapy के साथ-साथ दवाइयों का काफ़ी अच्छा असर देखा गया है।
BODY DYSMORPHIC DISORDER
इस रोग के रोगी लगातार एक ऐसे अहसास से घिरे रहते हैं जिसमे वे अपने समान्य से दिखने वाले शरीर भद्दा/बदसूरत/टेढ़ा मानते हैं। जबकि अन्य व्यक्तियों को उसमे कोई नुक्स नज़र नहीं आता है। वह ये भी सोचते हैं कि वह दूसरों के लिए आकर्षक नहीं हैं या इस वजह से लोग उससे कटते हैं। सांत्वना या शारीरिक सुन्दरता की प्रशंसा इन पर असर नहीं करती है। अधिकतर ऐसे मरीज़ त्वचा रोग विशेषज्ञ और प्लास्टिक सर्जन के पास परामर्श लेते हुए पाए जाते हैं। इस रोग को 15-30 वर्ष की आयु में प्रारंभ होते हुए देखा गया है। अधिकतर रोगी अपने चेहरे के किसी भाग से चिंतित रहते हैं जैसे नाक का टेढ़ापन पुरुषों में ज्यादातर शारीरिक पुष्टता को लेकर यह रोग देखा गया है। रोगी को अनावश्यक ही ऐसा लगता है कि लोग उस पर हंस रहे हैं, देख रहे हैं या टिप्पणी कर रहे हैं। बार-बार आइना देखना या आईने से दूर रहना, मेक-अप या कपड़े से उस भाग को ढकना/छुपा कर रखना, सामाजिक मिलन से कतराना या ऑफिस के कमरे में बंद होकर रहने जैसा व्यवहार इन रोगियों में देखने को मिल सकता है। कुछ रोगियों में यह सोच इतनी हावी हो जाती है की वह घर में बंद होकर रह जाता है।
      यदि कथित विकार को सर्जरी द्वारा बदल भी दिया जाये तो विकृत सोच का बदल पाना असफल ही रहता है। इसलिए काउन्सलिंग और मनोरोग सम्बंधित दवाइयाँ ही इसमें कारगर होती हैं।
PAIN DISORDER
      इस रोग में आकर्षण का मुख्य कारण दर्द होता है। प्रमुख लक्षणों में किसी एक या अधिक अंगों में दर्द जिसे शारीरिक या दिमागी संरचनात्मक द्रष्टिकोण द्वारा स्थापित न किया जा सके। यह दर्द भावनात्मक चिंता और विफल कार्यक्षमता का कारण बनता है। पुरुषों की तुलना में यह रोग महिलाओं में दोगुना होता है और अधिकतर यह रोग 40-50 वर्ष की आयु में प्रारंभ होता है। यह रोग blue-collar व्यवसाय से जुड़े व्यक्तियों में अधिकतर देखा गया है।
      Pain Disorder के रोगी एक संगठित समूह के न होकर अलग-अलग स्थित दर्द से ग्रसित होते हैं जैसे कमर दर्द, सर दर्द, चेहरे का दर्द, कूल्हे का दर्द, इत्यादि। सामान्यतः इन रोगियों में लम्बे समय की मेडिकल और सर्जिकल रोगों का इतिहास होता है, वे कई चिकित्सक बदलते हैं और आग्रह करते हैं ज्यादा दवाइयों की और सर्जरी की। वे अपनी ज़िन्दगी की विपत्तियों के लिए इस दर्द को दोषी ठहराते हैं। यह रोगी अधिकतर मानसिक तनाव के होने को मना करते हैं और अपनी ज़िन्दगी को खुशहाल बताते हैं सिवाय दर्द के।

      अक्सर यह रोग अचानक से प्रारंभ होता है और कुछ ही हफ़्तों में तीव्र हो जाता है। मानसिक तनाव का न पाता चलना, नकारात्मक सोच वाली शख्सियत, न्यायायिक प्रक्रिया में लिप्तता, आर्थिक संकट या व्यसन साथ में होने को रोग के ठीक होने के लिए बुरे कारकों में माना गया है।  काउन्सलिंग और मनोरोग सम्बंधित दवाइयाँ ही इसमें कारगर होती हैं।

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