Saturday 23 April 2016

Mania And Bipolar Disorder in Hindi

MANIA AND BIPOLAR DISORDER
मूड डिसऑर्डर (Mood Disorder) के तहत विकारों का एक बड़ा समूह आता है जिसमे रोगी के मूड के फ़ेरबदल और इससे सम्बंधित लक्षण बहुतायत में मिलते हैं जैसे डिप्रेशन, मेनिया, bipolar disorder, dysthymia और cyclothymia। मूड डिसऑर्डर एक लक्षणों का संग्रह होता है जोकि हफ़्तों और महीनों तक बने रह सकते हैं। मूड का फ़ेरबदल नॉर्मल, अतिप्रसन्न या उदासी के रूप में प्रस्तुत हो सकता है। ऐसे तो समान्य व्यक्ति भी मूड के फ़ेरबदल को महसूस कर सकता है लेकिन वे इन फ़ेरबदल को नियंत्रित करने में सक्षम होते हैं जबकि डिसऑर्डर होने पर रोगी इसे नियंत्रित नहीं कर सकता है। यहाँ हम bipolar disorder के बारे में चर्च करेंगे लेकिन इसे समझने से पहले मेनिया (Mania) को समझना होगा।
मेनिया (MANIA)
       मेनिया रोग में रोगी अतिप्रसन्न/चिडचिडा या उग्र मूड के साथ-साथ उत्तेजना, हानिकारक अत्यधिक आत्मविश्वास, बड़ी-बड़ी बातें करने वाला व्यवहार दर्शाता है। अतिप्रसन्नता, चिडचिडापन या उग्र मूड मेनिया का मुख्य लक्षण होता है। अनभिज्ञ चिकित्सक रोग के इस लक्षण को पहचानने में असमर्थ हो सकता है इसी तरह रोग के दौरान संपर्क में आने वाला अनजान व्यक्ति भी इस बदलाव से अनभिज्ञ रह सकता है। समीपता से संपर्क में रहने वाले व्यक्ति इस बदलाव को असमान्य महसूस करते हैं और जल्दी से पकड़ पाते हैं। मेनिया की शुरुआत होने पर मूड अतिप्रसन्नता दिखाई देता है और रोग बढ़ने की परिस्तिथि में यह चिडचिडापन और गुस्से का रूप धारण कर लेता है।
       मेनिया में मूड के साथ अन्य लक्षण हो सकते हैं जैसे
·       अत्यधिक बोलना, बोलते रहना,
·       अत्यधिक शारीरिक शक्ति का अहसास होना जिसके फलस्वरूप शारीरिक गतिविधियों का बढ़ जाना,
·       नींद कम आना, नींद की कमी का अहसास ना होना,
·       सामाजिक बंधनों के विपरीत व्यवहार करना जैसे बड़ों के सामने दुर्व्यवहार, गाली-गलौच करना, स्त्रियों का सम्मान न करना, तर्कसंगत वस्त्रों को ना पहनना, इत्यादि,
·       विषय, वस्तु या कार्य में एकाग्रता की कमी,
·       अत्यधिक आत्मविश्वास जैसे पैसे, ताकत और नए कार्यों को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करना,
·       तर्कराहित प्लान बनाना, पैसे का अनावश्यक उपयोग,
·       पूजा-पाठ, धर्म सम्बन्धी या दीनी बातों का बढ़ जाना इसी तरह राजनैतिक, आर्थिक, सेक्स-सम्बन्धी विचारों का बढ़ना,
·       अनावश्यक मांगे बढ़ना जैसे पैसे की, कपड़ों की, खाने की वस्तुओं की, इत्यादि,
इस प्रकार के लक्षण पिछले सात दिनों से ज्यादा समय से उत्पन्न हुए हों और बरकरार रहें या बढ़ते जायें तो इसे मेनिया रोग कहा जाता है।
अवसाद (Depression)
       अवसाद की जानकारी के लिए ब्लॉग के ‘depression’ वाला शीर्षक पढ़ें।
Bipolar Disorder
       Bipolar Disorder में रोगी के जीवनकाल में कभी मेनिया तो कभी अवसाद की स्तिथि बनती रहती है। यानि कि रोग बार-बार उभर कर आता है कभी मेनिया के रूप में तो कभी डिप्रेशन के रूप में।
       Bipolar Disorder की व्यापकता विश्व में 1% है और इसके होने की संभावना पुरुषों और स्त्रियों में समान होती है। मेनिया की स्तिथि पुरुषों में और डिप्रेशन की स्तिथि स्त्रियों में ज्यादा देखे जाते हैं। इसकी शुरुआत बाल्यकाल से लेकर 50 वर्ष तक की उम्र में भी देखी गयी है।
कारक
       जैविक कारक
             दिमाग के मुख्य रसायन जैसे सेरोटोनिन, नॉर-एपिनेफ्रिन और डोपामिन के बदलाव को इस रोग से जोड़कर देखा गया है। अनुवांशिक (genetic) कारकों की भी इस रोग में अहम भूमिका होती है जैसे कि इस रोग से ग्रसित रोगियों के माता-पिता या निकट सम्बन्धियों यह रोग 8–18  प्रतिशत तक पाया जाता है। 50% रोगियों के माता-पिता में अन्य किसी प्रकार का मूड डिसऑर्डर देखा गया है। यदि माता और पिता दोनों में यह रोग होता है तो बच्चों में इसके होने की संभावना 50 से 75 प्रतिशत तक देखी गयी है।
रोग का व्यवहार
             Bipolar Disorder अधिकतर, पुरुषों में 75% और महिलाओं में 67%, अवसाद से शुरू होता है। लगभग 10-20 प्रतिशत रोगियों में मेनिया ही बार-बार होता है। मेनिया के लक्षण लगभग 7 दिनों में पूर्ण रूप से उभर आते हैं। यदि इलाज ना मिले तो यह 3 महीने तक चल सकता है और अगली बार दोबारा होने की संभावना जल्द होती होती है। हर वृतांत के बाद लक्षण और भी उग्र और जल्द ठीक ना हो सकने वाले होते हैं। प्रथम वृतांत के बाद 90 प्रतिशत रोगियों में यह रोग दोबारा आता है। लेकिन लम्बे समय तक इलाज द्वारा इसकी संभावना को काफी कम किया जा सकता है और जीवन का बड़ा हिस्सा नॉर्मल/सामान्य होकर गुज़ारा जा सकता है।
       अच्छी व्यावसायिक स्तिथि का होना, परिवार का समर्थन और व्यसन का ना होना भविष्य में रोग ना होने के अच्छे कारकों में मन गया है।
इलाज
       जब रोग पूरे जोर पर हो तो उग्रता और उत्तेजना को नियंत्रित करने के लिए अस्पताल में भर्ती होकर इलाज की ज़रुरत पड़ सकती है। रोग धीरे-धीरे काबू में आता है और इलाज लम्बे समय तक चलता है।
       दवाइयों के प्रकार में mood stablizer ( sodium valproate, lithium, carbamazapine, इत्यादि) का प्रयोग होता है।

       अतिउग्र रूप वाली स्तिथि में इंजेक्शन अथवा electroconvulsive therapy का प्रयोग किया जा सकता है। भ्रांतियों से परे electrocovulsive therapy एक कारगर और सुरक्षित इलाज की विधि है। 

Friday 22 April 2016

Generalized Anxiety Disorder (GAD) in Hindi

GENERALIZED ANXIETY DISORDER (GAD) in Hindi
              GAD में रोज़मर्रा के कार्यों और क्रियाओं के प्रति अत्यधिक और अनावश्यक घबराहट बनी रहती है। जिन कार्यों को व्यक्ति रोज़ाना करता है उनसे घबराहट बनी रहती है और उनकी चिंता से मानसिक और शारीरिक तनाव के स्तिथि बनी रहती है। रोगी खुद को relax/तनावरहित महसूस नहीं कर पाता है। यह चिंताएं इतनी अधिक होती हैं कि इन्हें रोगी नियंत्रित नहीं कर पाता है और ये चिडचिडापन, अनिद्रा, बैचैनी और मांसपेशियों के तनाव में परिवर्तित हो जाती हैं। यह घबराहट इतनी अधिक होती है कि रोगी के जीवन और दिनचर्या को प्रभावित करती हैं। मांसपेशियों में तनाव की वजह से बैचैनी और सरदर्द बना रहता है। दिमागी कोशिकाओं के उत्तेजित बने रहने से सांस चढ़ना, पसीना आना, धड़कन बढ़ना और पेट में विकलता बनी रह सकती है। घबराहट के एवज में अत्यधिक चौकन्नापन से चिडचिडापन मन रह सकता है।
       इस रोग से ग्रसित ज्यादातर मरीज़ शारीरिक लक्षणों की वजह से फिजीशियन (physician) के पास पहुँचते हैं जैसे घबराहट से उत्पन्न लूज़ मोशन। इसी तरह अन्य शारीरिक लक्षणों की वजह से यह रोगी ज्यादातर जनरल फिजीशियन, कार्डियोलॉजिस्ट, छाती रोग विशेषज्ञ, उदर रोग विशेषज्ञ या अन्य के पास भटकते रहते हैं।
इलाज
       दवाइयों के साथ काउन्सलिंग से इलाज काफी कारगर होता है। 


Post Traumatic Stress Disorder in Hindi

POST TRAUMATIC STRESS DISORDER in Hindi
सामान्यतः यह रोग प्रारंभ होता है जब कोई व्यक्ति देखता है, सुनता है या संदर्भित होता है ऐसे किसी भयावह वाक्ये के बारे में जो कि हृदयविदारक हो। रोगी इस अनुभव से डर और असहाय होने की प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। वह उस घटना की याद को बार-बार अनुभव करता है जिससे उसे तीव्र घबराहट का अहसास होता है और कोशिश करता रहता उस घटना को ना याद करने की। यह घटनाएं हो सकती हैं जैसे युद्ध, उत्पीड़न, यातना, अत्याचार, प्राकृतिक आपदा, सड़क दुर्घटना, इत्यादि। यह घटनाएं स्वप्न में या रोजमर्रा में रोगी के दिमाग में घूमती हैं रोगी इसकी याद को मिटाने की मानसिक कोशिश करता है और वह शारीरिक सुन्नपन और अतिउत्तेजना महसूस करता है। साथ में वह अवसाद, घबराहट और एकाग्रता में कमी को भी महसूस करता है और साथ-साथ रोगी में अपराधबोध की भावना, चिडचिडापन, आक्रामकता तथा व्यसन (addiction) के लक्षण भी मिल सकता हैं।
              आमतौर पर इस तरह की घटनाएँ युद्ध में होती हैं इसलिए पूर्व में इस रोग को soldier’s heart, shell shock, combat neurosis, या operational fatigue के नामों से भी जान जाता था। इस रोग की जीवनकालिक व्यापकता लगभग 8 प्रतिशत है।
रोग का व्यवहार
       PTSD रोग सामान्यतः किसी दुर्घटना के बाद प्रारंभ होता है। घटना के बाद रोग प्रारंभ होने में 1 सप्ताह से लेकर 30 वर्षों का विलम्ब देखा गया है। लक्षण समय के साथ कम-ज्यादा होते रहते हैं और तनाव की स्तिथि में तीव्र हो सकते हैं। लक्षणों का तेज़ी से उभारना, रोग से पहले अच्छी व्यवस्थित ज़िन्दगी, मजबूत पारिवारिक सहायता, अन्य मानसिक/शारीरिक रोग का ना होना और व्यसन का ना होना रोग से जल्द उबरने के अच्छे संकेत होते हैं।
इलाज
       PTSD के रोगियों को सहायता, प्रोत्साहन, relaxation exercise के साथ-साथ दवाइयों द्वारा इलाज किया जाता है जिसके काफी अच्छे परिणाम देखे गए हैं।  
      

       

Tuesday 12 April 2016

Attention Deficit Hyperactivity Disorder (ADHD)- in Hindi

ATTENTION DEFICIT HYPERACTIVITY SYNDROME (ADHD)
      
    ADHD बच्चों में होने वाला विकार है। यूँ तो अमूमन लगभग सभी बच्चों में कभी ना कभी असंयमित व्यवहार दिखता है। वे अचानक से गतिमान हो सकते हैं, लगातार शोर मचाते रह सकते हैं, अपनी बारी आने में जल्दबाजी कर सकते हैं या आसपास की चीज़ों से भिड़ते रह सकते हैं। कभी कभी वे दिवास्वप्न की स्तिथि में दिखाई देते हैं। और काम शुरू करने बाद पूरा नहीं कर पाते हैं।
      
   लेकिन कुछ बच्चों में यह व्यवहार कभी-कभार होने वाले वाले व्यवहार से अधिक होता है। ADHD से ग्रसित बच्चों की यह व्यवहारिक समस्याएं तीव्र और बहुतायत में होती हैं जो उनके सामान्य जीवनयापन में बाधा डालती हैं।

   इन बच्चों को अपने भाई-बहनों और सहपाठियों के साथ-साथ बढ़ने में परेशानियाँ होती हैं। एकाग्रता में कमी होने के कारण पढाई दिमाग में बैठती नहीं है और आवेगपूर्ण होने के कारण भौतिक खतरे बने रहते हैं। ऐसे व्यवहार के कारण यह बच्चे अक्सर बुरे बच्चों की श्रेणी में रख दिए जाते हैं। इलाज प्राप्त ना हो सकने की परिस्तिथि में ADHD से ग्रसित बच्चे गंभीर व जीवनपर्यंत चलने वाले बुरे प्रभाव से जूझते रहते हैं जैसे की पढाई में कमज़ोर रह जाना, रिश्ते निभाने में असफलता, क़ानूनी प्रक्रिया में फंस जाना, नौकरी को ना संभाल पाना, इत्यादि।

   ADHD का कारगर इलाज मौजूद है। यदि आपका बच्चा ADHD से ग्रसित है तो उसके लिए विभिन्न प्रकार के इलाज को अपनाया जा सकता है जिसके फलस्वरूप वह खुशहाल व स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकता है। एक अभिभावक के रूप में इसके इलाज में आपका भी महत्वपूर्ण योगदान होता है।


ADHD क्या है:
यह बच्चों के कई प्रकार के विकारों में से एक है। यह एक दिमागी विकार है जो बच्चे को उसके व्यवहार को नियंत्रित करने में कठिनाई पैदा करता है। यह स्कूल जाने वाले 4 -12 % बच्चों को प्रभावित करता है। लड़कियों की तुलना में यह लड़कों में तीन गुना ज्यादा पाया है।


ADHD के लक्षण क्या हैं:
      ADHD में तीन संभागीय लक्षण पाए जाते हैं जो नीचे तालिका में दर्शाए गए हैं:
तालिका – 1 : ADHD के लक्षण
लक्षण
किस प्रकार से बच्चों में दिखता है।
एकाग्रता में कमी
(Inattention)
·       ध्यान केन्द्रित ना कर पाना या दिन में स्वप्न देखते हुए जैसे प्रतीत होना।
·       सामने-सामने बात करने पर ऐसा प्रतीत होना जैसे आपकी बात सुन ही नहीं रहा है।
·       पढ़ते समय या खेल में आसानी से ध्यान भंग हो जाना।
·       समझी हुई बातों/कार्यों में गलती करना।
·       कई चरणों में पूर्ण होने वाले कार्य न कर सकना/कार्य अधूरे छूटना।
·       क्रिया कलापों में अस्तव्यस्तता नज़र आना।
·       महत्वपूर्ण सामान/कार्यों को भूल जाना।
·       ऐसे कार्यों को करने में आना-कानी करना जिसमें एकाग्र होकर बैठना पड़े।
अत्यधिक चंचलता
(Hyperactivity)
·       लगातार चलायमान रहना जैसे कि शरीर में मोटर लगी हो।
·       लम्बे समय तक टिक कर ना बैठ पाना।
·       बैठे होने पर भी बदन का हिलना-डुलना और हाथ-पैरों का चलते रहना।
·       अत्यधिक बोलते रहना।
·       अत्यधिक दौड़ना, कूदना या फ़र्निचर पर चढ़ना जहाँ इसकी इजाज़त न हो।
·       खेल में शांति ना बनाये रख पाना।
आवेग
(Impulsivity)
·       बगैर सोचे समझे कार्य कर डालना या बोल पड़ना।
·       ट्रैफिक का ध्यान ना रखते हुए दौड़ पड़ना।
·       अपनी बारी आने का इंतज़ार ना कर पाना।
·       पूरा सवाल सुने बिना उत्तर देना।
·       दूसरों के वार्तालाप में बाधा बनना।



ADHD के विभिन्न प्रकार कौन कौन से हैं:
ADHD से ग्रसित सभी बच्चों में सभी लक्षण नहीं पाए जाते है इनका विभाजन इस प्रकार से है:
1.      संयुक्त एकाग्रता, चंचलता व आवेग वाले लक्षण – इस प्रकार में बच्चे तीनो प्रकार के लक्षणों से प्रभावित होते हैं। यह प्रकार सबसे ज्यादा देखा जाता है।
2.      केवल एकाग्रता में कमी वाला प्रकार – केवल एकाग्रता में कमी होने से यह प्रकार अक्सर अनदेखा रह जाता है। यह लड़कियों में ज्यादा पाया जाता है।
3.      चंचल/आवेग वाला प्रकार – यह सबसे कम पाया जाने वाला प्रकार है।

सरल शब्दों में कैसे समझ सकता/सकती हूँ कि मेरे बच्चे को ADHD है?
     
   याद रखें समय समय पर एक सामान्य बच्चा भी ऐसे लक्षणों को दर्शा सकता है, जैसे की घर या स्कूल में तनाव या बोर होने की स्तिथि में। इसका मतलब यह नहीं कि उसे ADHD है। कुछ सवाल जो आपकी समझ में मदद कर सकते हैं जैसे की :
  • ·       ठीक बुद्धि होने के बाद भी बच्चा पढाई में ठीक नहीं कर पा रहा है,
  • ·       अध्यापक द्वारा लक्षणों के प्रकार की टिप्पणी करना,
  • ·       क्या वह स्कूल में खुश है,
  • ·       कक्षाकार्य या गृहकार्य को पूरा कर पाता है,
  • ·       किसी अनचाहे व्यवहार की वजह से आप चिंता में रहते हैं,


   जेहन में और भी कोई बात हो तो अपने मनोचिकित्सक से बात करें ADHD के निदान (diagnosis) के लिए एक से ज्यादा परिवेश के व्यक्तियों द्वारा दी गयी जानकारी भी महत्वपूर्ण होती है जैसे अध्यापक।


कारण:
ADHD के मूल कारणों का अभी तक पाता नहीं लगाया जा सका है
·       यह एक दिमागी कोशिकाओं में बदलाव द्वारा होने वाला विकार है कभी कभी माता-पिता में यह विकार ज्ञात होता जब वे अपने बच्चे के लिए विशेषज्ञ से मिलते हैं।
·       दिमाग के केंद्र में जो एकाग्रता को नियंत्रित करता है, उसकी क्रिया-प्रतिक्रिया में कमी देखी गयी है।
·       गर्भवती होने के दौरान धुम्रपान या शराब के सेवन की समीपता से ADHD को जोड़कर देखा गया है।
·       सर में गहरी चोट से जोड़कर देखा गया है।


इलाज:
      एक बार ADHD का निदान होने के बाद इलाज द्वारा काफी सकारात्मक नतीजे देखे गए हैं। हालांकि ADHD के इलाज में कई तरीके अपनाये जाते हैं, लेकिन बालक विशेष के लिए विशेष प्रारूप तैयार किया जाता है। इलाज के मुख्या बिंदु इस प्रकार से हैं:
·       दीर्घकाल में चलने वाली इलाज की प्रक्रिया जिसमे-
o   विशेष व्यवहार को टारगेट करना
o   प्रत्येक विजिट की क्रिया प्रणाली बनाना
o   समय-समय पर विभिन्न बिन्दुओं को निगरानी में रखना
·       ADHD के बारे में जागरूक करना,
·       डॉक्टर, अभिभावक, अध्यापक, बच्चे और अन्य को टीम की तरह जोड़ना,
·       दवाइयाँ,
·       Behavior therapy including parental training,
·       बच्चे और परिवार की काउन्सलिंग।
ADHD का इलाज लम्बे समय तक चलने वाली एक प्रक्रिया कह सकते हैं जिससे बच्चे का भविष्य बेहतर किया जा सकता है। और जानकारी के लिए मनोचिकित्सक से मिलें। 


Monday 11 April 2016

Social Phobia AND Specific Phobia in Hindi

Phobia (फ़ोबिया )- फ़ोबिया एक तर्कहीन या असंगत डर होता है जो चेतनमन से डर वाली वस्तु, कार्य या परिस्तिथि से परिहार/दूर रहने को कहते हैं।
     A phobia is defined as an irrational fear that produces conscious avoidance of the feared object, activity or situation.
SOCIAL PHOBIA (सोशल फ़ोबिया)
सोशल फ़ोबिया में रोगी को कुछ गलत होने का या अनर्थ होने का अत्यधिक/अनावश्यक डर बना रहता है, जब उसे सामाजिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जैसे भीड़ को संबोधित करना, व्याख्यान करना, सार्वजनिक संसाधनों का इस्तेमाल करना जैसे टॉयलेट या किसी अजनबी से बात करना।
       सोशल फ़ोबिया लगभग 3 से 13 प्रतिशत लोगों में पाया जाता है और स्त्रियों में यह ज्यादा देखा गया है।
       कई शोधों में यह देखा गया है कि वे बच्चे जिनके माता-पिता में यह रोग देखा गया है वे शुरुआत से ही समाज में घुल-मिल नहीं पाते हैं और जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं वे और शर्मीले होते जाते हैं। यह उन बच्चों में भी देखा गया है जिनके अभिभावक कम ध्यान देने वाले होते हैं, बच्चों से दूर रहने वाले या अत्यधिक सुरक्षा देने वाले होते हैं।
       रोगी को हमेशा यह डर रहता है कि ऐसी परिस्तिथियों के समक्ष वे कुछ ऐसा व्यवहार करेंगे जो अपमानजनक या लज्जाजनक होगा। ऐसी परिस्तिथि आने पर घबराहट होती है और panic attack (तीव्र घबराहट) भी पड़ सकता है।  ऐसी सोच और सोच से घबराहट उत्पन्न होने से रोगी ऐसी परिस्तिथियों का सामना करने से घबराता है और दूरी बना लेता है जो उसके व्यक्तित्व/व्यावसायिक विकास में बाधा बनती है, खासकर बच्चों में।
इलाज
दवाइयों के साथ-साथ व्यावहारिक इलाज और काउन्सलिंग काफी लाभदायक होता है।





SPECIFIC PHOBIA (स्पेसिफिक फ़ोबिया)
specific phobia स्त्रियों में अधिकतम और पुरुषों में दूसरे स्थान पर पाया जाने वाला मनोरोग है। इसकी शुरुआत ज्यादातर 5-9 साल की उम्र में होती है अपितु यह बाद में भी प्रारंभ हो सकता है।
       specific phobia का उद्गम जीवकाल में घाट घटनाओं से अभिव्यक्ति या/और घबराहट के जुड़ने से हो सकता है, जैसे किसी सड़क दुर्घटना के बाद घबराहट और अभिव्यक्ति का जुड़ना और वाह्नचालन से फ़ोबिया उत्पन्न होना।
       फ़ोबिया उत्पन्न करने वाले कारक का सामना होने पर घबराहट होना जो panic attack का भी रूप ले सकती है। बच्चों में घबराहट रोने के रूप में, स्तब्धता, चिपकना, चिडचिडापन या झल्लाहट के रूप में प्रस्तुत हो सकता है।
इलाज
मुख्यतः व्यावहारिक इलाज और counseling (काउन्सलिंग)।







Schizophrenia (स्किज़ोफ्रेनिया) - in Hindi

SCHIZOPHRENIA (स्किज़ोफ्रेनिया)
विश्व में स्किज़ोफ्रेनिया लगभग 1% लोगों में पाया जाने वाला रोग है। सामान्यतः यह 25 वर्ष की उम्र से पहले शुरू हो जाता है। यह जीवनपर्यंत चलने वाला रोग होता है और सभी वर्गों के व्यक्तियों को यह रोग हो सकता है। प्रत्येक रोगी में इसके लक्षण रोग का व्यवहार और इलाज का परिणाम अलग-अलग हो सकता है। स्किज़ोफ्रेनिया रोग का निदान (diagnosis) पूर्णतया इसके मेडिकल इतिहास और रोगी के मानसिक परिक्षण पर निर्भर करता है। इस रोग के पहचानने के लिए कोई लैब जांच उपलब्ध नहीं है अपितु सामान्य जांचें समय-समय पर आवश्यकतानुसार कराई जा सकती हैं।
      यह रोग सभी समाज और क्षेत्रों में सामान रूप से पाया जाता है। विभिन्न कारणों से इस रोग से ग्रसित आधे रोगी ही इलाज प्राप्त कर पाते हैं। स्किज़ोफ्रेनिया महिलाओं व पुरुषों में समान रूप से पाया जाता है लेकिन इसकी शुरुआत पुरुषों में जल्दी उम्र में देखी गयी है। स्किज़ोफ्रेनिया रोग की उत्पत्ति अनुवांशिक, मानसिक, और सामाजिक कारकों के मिलेजुले रूप से होता है। सबसे महत्वपूर्ण रसायन dopamine की अधिक सक्रियता के होने को शोधों में पाया गया है अन्य शोधों में अन्य रसायनों, दिमागी कोशिकाओं की संरचना, रक्त का प्रवाह, विध्युत गतिविधियाँ, प्रतिरोधक तंत्र इत्यादि को भी जोड़कर देखा गया है।  
मुख्य नैदानिक लक्षण (diagnostic criteria)
स्किजोफ्रेनिया के निदान के लिए मुख्या लक्षण इस प्रकार से होते हैं:
·         भ्रमित सोच (delusions)
इस तरह की सोच में रोगी अनावश्यक और काल्पनिक डर या शक जाहिर करता है जिसका कोई प्रमाणित आधार नहीं होता है। जैसे कोई उसे मार देगा, उसे नुक्सान पहुंचा देगा पति या पत्नी के चरित्र को लेकर शक, खाने में कुछ मिला देने का शक, मन के विचार पढ़ लिए जाने का शक, माँ में विचार दाल दिए जाने का शक, शारीरिक गतिविधियों के दूसरे के वश में हो जाने का शक, शरीर में चिप (electric chip) लगा दिए जाने का शक, इत्यादि।
·         काल्पनिक आवाजें सुनाई देना (hallucinations)
रोगी को असली लगने वाली आवाजें सुनाई देना जैसे धमकाने की, उससे कार्य करने की, या एक से ज्यादा आवाजें रोगी के बारे में बात कर रही हों। रोगी इनके स्रोत ढूँढने की कोशिश करता है पर मिलती नहीं। घर के अन्य सदस्यों को यह आवाजें नहीं सुनाई देती।
·         समझ में ना आने वाली भाषा का प्रयोग (disorganized speech)
जैसे सवाल का सही जवाब ना देना, बोलते – बोलते विषय से भटक जाना या बीच में नई बात भर देना, इत्यादि।
·         Catatonic Symptoms
लम्बे समय तक जड़मत होकर रहना, अचानक तीव्र उग्रता, मूक होना, धीमी चाल, शरीर में कड़ापन, इत्यादि।
·         ऋणात्मक लक्षण (Negative Symptoms)
चेहरे पर भावनाओं का अभाव, बोल बंद होना, कार्यों में रूचि का ख़त्म होना, कार्यों की शुरुआत न करना और ध्यान केन्द्रित ना कर पाना।

नैदानिक लक्षणों के अलावा कई और लक्षण मिल सकते है जैसे:
      अकेले में बुदबुदाना/बातें करना, हवा में इशारे करना, चेहरे बनाना, कूड़ा इकट्ठा कर लेना, स्वच्छता का स्तर गिरना, बेमौसम के कपड़े पहनना, बिना मकसद कार्य करना/घूमना, इत्यादि।

नैदानिक लक्षणों के आधार पर स्किजोफ्रेनिया मुख्यतः चार प्रकार का होता है :
·         Paranoid
इस प्रकार में delusion और hallucination वाले लक्षणों की बहुतायतता होती है।
·         Disorganized
इस प्रकार में disorganized speech और disorganized behavior बहुतायतता में होता है।
·         Catatonic
इसमें catatonic लक्षण मूल रूप से होते हैं।
·         Undifferentiated
इसमें सभी प्रकार के लक्षण मिले-जुले और समान रूप से पाए जाते हैं।

      इन लक्षणों में से किसी भी लक्षण का स्किजोफ्रेनिया पर विशेषाधिकार नहीं होता है यानि यह अन्य मानसिक रोगों में भी यदा-कदा पाए जा सकते हैं। रोगी के लक्षण और उनकी तीव्रता समय के साथ बदल सकते है। लक्षण का प्रकार रोगी की शिक्षा, बोद्धिक स्तर और सामाजिक परिवेश/मान्यताओं पर भी निर्भर करता है। रोग के चरम स्तर पर होने पर यदा-कदा रोगियों में उग्रता, खुद को या दूसरों को हानि पहुचाने की प्रवृत्ति देखी जा सकती है।
रोग का व्यवहार
शुरू होने के बाद रोग को पूर्ण रूप से विकसित होने में कई महीनों का समय लग सकता है। और इस बीच लक्षण कुछ इस तरह के दिखते हैं जैसे स्कूल/कॉलेज/व्यवसाय से दूर हो जाना/रूचि ना लेना, व्यसन का इस्तेमाल करने लगना, गुमसुम रहें लगना, इत्यादि।
      आगे चलकर इस रोग में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं और हर चढ़ाव के बाद कार्यक्षमता अधिक क्षीण पड़ती जाती है। लम्बी बिमारी होने के बाद अवसाद (depression) के लक्षण भी साथ में हो सकते हैं। एक तिहाई रोगियों में इलाज के माध्यम से लक्षण समाप्त हो जाते हैं परन्तु इलाज तब भी लम्बे समय तक चलता है। एक तिहाई रोगियों में कुछ लक्षण बचे रह जाते हैं फिर भी वे मदद और सहायता से काम-काज कर लेते हैं। और बचे एक तिहाई रोगी मामूली या थोड़ा सा ही इलाज को प्रतिक्रिया देते हैं और अपना जीवन असक्रियता और बार-बार अस्पताल में भर्ती होकर गुज़ार देते हैं।
इलाज
Antipsychotic दवाइयों के सही इस्तेमाल से लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। Electroconvulsive Therapy का भी काफी अच्छा असर देखा जाता है। रोग के चरम पर होने पर रोगी को अस्पताल में भर्ती किया जा सकता है। उपलब्ध अन्य सामजिक स्रोतों और मदद से इन रोगियों को काफी हद तक जीवन की मुख्यधारा में समाहित किया जा सकता है।


SCHIZOPHRENIA – FACTS AND MYTHS (सच्चाई और मिथ्या), परिवार का दायित्व और कर्तव्य व अन्य जानकारियां

(A)  मिथ्या और सच्चाई

·    मिथ्या - ये लक्षण किसी जादू/टोना/टोटका/ऊपरी का प्रभाव है?

सच्चाई - ये लक्षण क्योंकि शारीरिक रोग के नहीं होते हैं अथवा ये लक्षण व्यवहारिक होते हैं इसलिए ऐसा लगता है कि ये किसी तंत्र-मंत्र या जादू का प्रभाव है। लेकिन सच्चाई को इस तरह से समझा जा सकता है कि हमारा व्यवहार भी हमारे दिमाग की रसायनिक क्रिया-प्रतिक्रिया द्वारा संचालित होता है, इस रसायनिक प्रक्रिया में आया बदलाव व्यवहार में भी परिवर्तन ला सकता है और यह परिवर्तन एक रोग हो सकता है।

·        मिथ्या – रोगी कोशिश करे तो अपनी सोच व व्यवहार बदल सकता है यह रोगी का स्वयं का आलसपन है? 

सच्चाई – क्योंकि यह रोग भी अन्य रोगों की तरह जैविक (biological) कारणों से होता है इसलिए रोगी द्वारा इसे सोच से नहीं बदला जा सकता है। इस रोग के लक्षण दवाई देने से धीरे-धीरे काबू में आते हैं और इलाज ठीक होने के बाद भी लम्बे समय तक चलता है।

·        मिथ्या – यह रोगी हमेशा आक्रामक होते हैं?

सच्चाई – यह रोग के तीव्र होने की स्तिथि में आक्रामक हो सकते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सभी रोगी हर समय आक्रामक मूड में होते हैं और बिना किसी कारण के वह गुस्सा या हमला कर सकते हैं। सुचारू रूप से इलाज लेने पर रोग जल्दी ही काबू में आ जाता है और आक्रामक लक्षण समाप्त हो जाते हैं और रोगी सामान्य जीवनयापन कर पाता है। शोधों में तुलना करने पर यह पाया गया है कि इन रोगियों की आक्रामकता की तादात नॉर्मल व्यक्तियों की आक्रामकता की तादात से कम होती है।  

·        मिथ्या – इलाज की दवा बस नींद लाने का काम करती हैं?

सच्चाई – ऐसा नहीं है, यह दवाइयाँ रसायनिक बदलाव को ठीक करती हैं। क्योंकि यह दवाइयां दिमाग पर असर करती हैं इसलिए नींद आना इनका साइड इफ़ेक्ट हो सकता है जो नियमित दवाइयाँ लेने पर समय के साथ-साथ ठीक हो जाता है। और लक्षणों पर इन दवाइयों का असर दिखने लगता है। अक्सर नींद न आना रोग का हिस्सा भी होता है ऐसे में यह इफ़ेक्ट मददगार भी होता है।

·        मिथ्या – रोगी का विवाह कर देने से यह रोग सुधर सकता है या ठीक हो जाता है?

सच्चाई – क्योंकि यह रोग जैविक आधार पर उत्पन्न होता है इसलिए अन्य रोगों (जैसे शुगर) की तरह इस रोग का विवाह या शादी से कोई ताल्लुक नहीं है। बल्कि गृहस्थ जीवन के साथ तालमेल न बैठा सकने की स्तिथि में यह सामाजिक तौर पर हानिकारक भी हो सकता है।

·        मिथ्या – रोगी को जीवनपर्यंत अस्पताल में रहना पड़ता है?

सच्चाई – पुराने समय में जब अत्याधुनिक कारगर दवाइयाँ मौजूद नहीं थीं तब ऐसे रोगियों को लम्बे समय तक या जीवनपर्यंत अस्पताल में रहना पड़ता था। परन्तु अब ऐसी दवाइयाँ और इलाज उपलब्ध है जिससे रोगी ठीक होकर समाज में एक सामान्य जीवन जी सकता है। बस उसे उचित समय पर परामर्श और लम्बे समय तक दवाई लेने की आवश्यकता होती है। शोधों में यह भी देखा गया है रोगी को उसके सामाजिक परिवेश में रखकर इलाज किया जाये तो उसकी कार्यक्षमता सकारात्मक तरीके से बढती है।


(B)  परिवार का दायित्व और कर्तव्य

  •     रोगी को सकारात्मक बातों के लिए प्रोत्साहित करना है, लेकिन ज़रुरत से ज्यादा संरक्षण नहीं देना है, जैसे रोजमर्रा के क्रिया-कलापों को और छोटे-छोटे कार्यों को खुद करने देना है।
  • ·  नियमित दवा लेने के लिए प्रोत्साहित करें तथा बिना सलाह के और इच्छानुसार दवा की मात्रा कम या ज्यादा न करें।
  • ·        अपना काम स्वयं करने दें जिससे रोगी का आत्मविश्वास बढ़े। रोगी को उसके सामर्थ्य के हिसाब से काम दें।
  • ·        इलाज नियमित रूप कराएं जिससे रोग के दोबारा उत्पन्न होने की संभावना कम रहे।
  • ·        रोगी की गलतियों पर अपना गुस्सा व चिडचिडापन न दिखाएं बल्कि उस काम को करने का सही तरीका बताएं व उसकी मदद करें।
  • ·        मरीज़ के व्यवहार व उपलब्धि को लेकर उसकी तुलना दूसरों से न करें।
  • ·        दवाइयाँ अपनी निगरानी में ही खाने को दें।
  • ·        रोगी के साथ लगभग वैसा ही व्यवहार करें जैसा रोग होने के पहले करते थे।

    
(C)  स्किज़ोफ्रेनिया के बारे में अन्य बातें

·        शराब या अन्य नशीली दवाइयों के सेवन से बचें।
·        बिना सलाह लिए दवाएं लेना बंद न करें और दवाओं की मात्र में बदलाव न करें।
·        भावनात्मक व पारिवारिक कलह उत्पन्न न होने दें घर का माहौल शांतिप्रिय बनाये रखें व आपस में सामंजस्य बैठाएं।
·        रोगी की क्षमता के परे काम न लें।

·        दवाओं से किसी भी तरह की परेशानी होने पर तुरंत अपने मनोचिकित्सक से मिलें  अथवा मनोचिकित्सक के उपलब्ध न होने पर आपातकाल में अन्य फिज़िशियन या आपातकालीन विभाग में संपर्क करें।