Saturday 23 April 2016

Mania And Bipolar Disorder in Hindi

MANIA AND BIPOLAR DISORDER
मूड डिसऑर्डर (Mood Disorder) के तहत विकारों का एक बड़ा समूह आता है जिसमे रोगी के मूड के फ़ेरबदल और इससे सम्बंधित लक्षण बहुतायत में मिलते हैं जैसे डिप्रेशन, मेनिया, bipolar disorder, dysthymia और cyclothymia। मूड डिसऑर्डर एक लक्षणों का संग्रह होता है जोकि हफ़्तों और महीनों तक बने रह सकते हैं। मूड का फ़ेरबदल नॉर्मल, अतिप्रसन्न या उदासी के रूप में प्रस्तुत हो सकता है। ऐसे तो समान्य व्यक्ति भी मूड के फ़ेरबदल को महसूस कर सकता है लेकिन वे इन फ़ेरबदल को नियंत्रित करने में सक्षम होते हैं जबकि डिसऑर्डर होने पर रोगी इसे नियंत्रित नहीं कर सकता है। यहाँ हम bipolar disorder के बारे में चर्च करेंगे लेकिन इसे समझने से पहले मेनिया (Mania) को समझना होगा।
मेनिया (MANIA)
       मेनिया रोग में रोगी अतिप्रसन्न/चिडचिडा या उग्र मूड के साथ-साथ उत्तेजना, हानिकारक अत्यधिक आत्मविश्वास, बड़ी-बड़ी बातें करने वाला व्यवहार दर्शाता है। अतिप्रसन्नता, चिडचिडापन या उग्र मूड मेनिया का मुख्य लक्षण होता है। अनभिज्ञ चिकित्सक रोग के इस लक्षण को पहचानने में असमर्थ हो सकता है इसी तरह रोग के दौरान संपर्क में आने वाला अनजान व्यक्ति भी इस बदलाव से अनभिज्ञ रह सकता है। समीपता से संपर्क में रहने वाले व्यक्ति इस बदलाव को असमान्य महसूस करते हैं और जल्दी से पकड़ पाते हैं। मेनिया की शुरुआत होने पर मूड अतिप्रसन्नता दिखाई देता है और रोग बढ़ने की परिस्तिथि में यह चिडचिडापन और गुस्से का रूप धारण कर लेता है।
       मेनिया में मूड के साथ अन्य लक्षण हो सकते हैं जैसे
·       अत्यधिक बोलना, बोलते रहना,
·       अत्यधिक शारीरिक शक्ति का अहसास होना जिसके फलस्वरूप शारीरिक गतिविधियों का बढ़ जाना,
·       नींद कम आना, नींद की कमी का अहसास ना होना,
·       सामाजिक बंधनों के विपरीत व्यवहार करना जैसे बड़ों के सामने दुर्व्यवहार, गाली-गलौच करना, स्त्रियों का सम्मान न करना, तर्कसंगत वस्त्रों को ना पहनना, इत्यादि,
·       विषय, वस्तु या कार्य में एकाग्रता की कमी,
·       अत्यधिक आत्मविश्वास जैसे पैसे, ताकत और नए कार्यों को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करना,
·       तर्कराहित प्लान बनाना, पैसे का अनावश्यक उपयोग,
·       पूजा-पाठ, धर्म सम्बन्धी या दीनी बातों का बढ़ जाना इसी तरह राजनैतिक, आर्थिक, सेक्स-सम्बन्धी विचारों का बढ़ना,
·       अनावश्यक मांगे बढ़ना जैसे पैसे की, कपड़ों की, खाने की वस्तुओं की, इत्यादि,
इस प्रकार के लक्षण पिछले सात दिनों से ज्यादा समय से उत्पन्न हुए हों और बरकरार रहें या बढ़ते जायें तो इसे मेनिया रोग कहा जाता है।
अवसाद (Depression)
       अवसाद की जानकारी के लिए ब्लॉग के ‘depression’ वाला शीर्षक पढ़ें।
Bipolar Disorder
       Bipolar Disorder में रोगी के जीवनकाल में कभी मेनिया तो कभी अवसाद की स्तिथि बनती रहती है। यानि कि रोग बार-बार उभर कर आता है कभी मेनिया के रूप में तो कभी डिप्रेशन के रूप में।
       Bipolar Disorder की व्यापकता विश्व में 1% है और इसके होने की संभावना पुरुषों और स्त्रियों में समान होती है। मेनिया की स्तिथि पुरुषों में और डिप्रेशन की स्तिथि स्त्रियों में ज्यादा देखे जाते हैं। इसकी शुरुआत बाल्यकाल से लेकर 50 वर्ष तक की उम्र में भी देखी गयी है।
कारक
       जैविक कारक
             दिमाग के मुख्य रसायन जैसे सेरोटोनिन, नॉर-एपिनेफ्रिन और डोपामिन के बदलाव को इस रोग से जोड़कर देखा गया है। अनुवांशिक (genetic) कारकों की भी इस रोग में अहम भूमिका होती है जैसे कि इस रोग से ग्रसित रोगियों के माता-पिता या निकट सम्बन्धियों यह रोग 8–18  प्रतिशत तक पाया जाता है। 50% रोगियों के माता-पिता में अन्य किसी प्रकार का मूड डिसऑर्डर देखा गया है। यदि माता और पिता दोनों में यह रोग होता है तो बच्चों में इसके होने की संभावना 50 से 75 प्रतिशत तक देखी गयी है।
रोग का व्यवहार
             Bipolar Disorder अधिकतर, पुरुषों में 75% और महिलाओं में 67%, अवसाद से शुरू होता है। लगभग 10-20 प्रतिशत रोगियों में मेनिया ही बार-बार होता है। मेनिया के लक्षण लगभग 7 दिनों में पूर्ण रूप से उभर आते हैं। यदि इलाज ना मिले तो यह 3 महीने तक चल सकता है और अगली बार दोबारा होने की संभावना जल्द होती होती है। हर वृतांत के बाद लक्षण और भी उग्र और जल्द ठीक ना हो सकने वाले होते हैं। प्रथम वृतांत के बाद 90 प्रतिशत रोगियों में यह रोग दोबारा आता है। लेकिन लम्बे समय तक इलाज द्वारा इसकी संभावना को काफी कम किया जा सकता है और जीवन का बड़ा हिस्सा नॉर्मल/सामान्य होकर गुज़ारा जा सकता है।
       अच्छी व्यावसायिक स्तिथि का होना, परिवार का समर्थन और व्यसन का ना होना भविष्य में रोग ना होने के अच्छे कारकों में मन गया है।
इलाज
       जब रोग पूरे जोर पर हो तो उग्रता और उत्तेजना को नियंत्रित करने के लिए अस्पताल में भर्ती होकर इलाज की ज़रुरत पड़ सकती है। रोग धीरे-धीरे काबू में आता है और इलाज लम्बे समय तक चलता है।
       दवाइयों के प्रकार में mood stablizer ( sodium valproate, lithium, carbamazapine, इत्यादि) का प्रयोग होता है।

       अतिउग्र रूप वाली स्तिथि में इंजेक्शन अथवा electroconvulsive therapy का प्रयोग किया जा सकता है। भ्रांतियों से परे electrocovulsive therapy एक कारगर और सुरक्षित इलाज की विधि है। 

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